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________________ प्रमेयबोधिनी टोका पद ९ सू.३ योनिपदनिरूपणम् i, समुच्छिमाणी, नो संवुडवियाजो पुच्छा, गोयमा ! नो जोणी, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं, बेइंदियाणं पुच्छा, गोयमा ! नो संवुडजोणी वियडजोणी, नो संवुडवियडजोणी, एवं जाव चउरिंदिया, समुच्छिमपंचिंदियतिरिक्ख जोणीयाणं, संमुच्छिममणुस्साण य एवं चेव, गभवतियपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, गभवतियमणुस्साण य नो संवुडाजोणी, नो वियडाजोणी, संवुडवियडाजोणी, वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरइयाणं, एएसि णं भंते ! जीवाणं संवुडजोणियाणं, वियडजोणियाणं, संवुड वियडजोणियाणं अजोणियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्लावा, विसेसाहियावा ? गोयमा! सवत्थोवा जीवा संवुडवियडजोणिया, वियडजोणिया असंखिजगुणा, अजोणिया अणंतगुणा, संवुडजोणिया अणंतगुणा ॥ सू० ३ ॥ छाया-कतिविधा खलु भदन्त ! योनिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! त्रिविधा योनिः-प्रज्ञप्ता, तद्यथा -संवृता योनिः, विवृता योनिः, संवृतविवृता योनिः, नैरयिकाणां भदन्त ! किं संवृता योनिः, विवृता योनिः संवृतक्वृिता योनिः? गौतम! संवृतयोनिः, नो विवृतयोनिः नो संवृतविवृतयोनिः, योनिविशेष की वक्तव्या शब्दार्थ-(कइविहा णं भंते ! जोणी पण्णत्ता ?) भगवान् ! योनि कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता) हे गौतम ! तीन प्रकार की योनि कही गई है । (तं जहा) वह इस प्रकार (संबुडा जोणी) संवृता अर्थातू ढं की हुई योनि (विषडा जोणी) विवृता योनि (संवुडवियडा जोणी) संवृतविवृता योनि । (नेरइया णं भंते ! कि संवुडा जोणी, वियडाजोणी, संवुडवियडा जोणी?) भगवन् ! नारक जीवों की योनि क्या संवृत होती है, विवृत होती है या संवृत નિ વિશેષની વક્તવ્યતા शहाथ-(कइविहा णं भंते ! जोणी पण्णत्ता ?) 3 मान्! योनिमा प्रती ४४ी छ ? (गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता) गौतम ! १ ४२नी योनि ही छ (तं जहा) ते २॥ प्राय छे (संवुडा जोणि) सवृत्त अर्थात् ढiseी यानि (वियडा जोणी) विवृत्त योनि (संवुडवियडा जोणी) सत्त विवृत्त योनि (नेरइयाणं भंते ! किं संवुडा जोणी, वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी) 3 मावन् ! નારક જીની નિ શું સંવૃત્ત હોય છે, વિવૃત્ત હોય છે, સંવૃત્ત-વિવૃત હોય છે? श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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