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________________ प्रज्ञापनासूत्रे पपातगतिः ? देवक्षेत्रोपपातगति श्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-भवनपतिदेवक्षेत्रोपपातगतिः, यावद् वैमानिकदेवक्षेत्रोपपातगतिः, तत् सा देवक्षेत्रोपपातगतिः ४,। टीका-पूर्वव्यापारविशेषात्मकप्रयोगस्वरूपस्य प्ररूपितत्वेन जीवानामजीवानाञ्च प्रयोगशादेव गतिर्भवतीति गतिस्वरूपं प्ररूपयितुमाह-कइविहे णं भंते ! गप्पचाए पणते ?' हे भदन्त ! कतिविधः खलु गतिप्रपातः प्रज्ञप्तः ? तत्र गमनं गतिः, सा च देशान्तरविषया पर्यायान्तरविषया प्राप्तिरूपाऽवसे या तथाविधाया गतेः प्रपातो गतिप्रपात इत्यर्थः,भगवानाह'गोयमा !' हे गौतम ! 'पंचविहे गइप्पयाए पण्णत्ते' पञ्चविधो गतिप्रपातः प्रज्ञप्तः 'तं जहाअत्रोपपातगति (से तं मणूसखेत्तोववायगती) यह मनुष्यक्षेत्रोपपातगति हुई । (से किं तं देवखेत्तोवधायगती ?) देवक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? (देव खेत्तोचवायगती चउव्यिहा पणत्ता) देवक्षेत्रोपपातर्गात चार प्रकार की कही है (तं जहा) यह इस प्रकार (भवणवइदेवखेत्तोववायगती जाव वेमाणियदेव खेत्तोयवायगती) भवनपतिदेवक्षेत्रोपपातगति यावत् वैमानिकदेवक्षेत्रोपपातगति (से तं देवखेत्तोववायगती) यह देवक्षेत्रोपपातगति हुई।। टीकार्थ-विशेष व्यापाररूप प्रयोग का इससे पूर्व निरूपण किया गया है और प्रयोग के कारण जीवों और अजीवों की गति होती है, अतएव अब गति के स्वरूप का निरूपण किया जाता है। गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-भगवन् ! गतिप्रपात कितने प्रकार का कहा है ? गमन करना गति कहलाता है। एक देश से दूसरे देश में प्राप्त होना और एक पर्याय त्याग कर दूसरे पर्याय को प्राप्त होना यहां गति का अर्थ समझना चाहिए। गति का प्रपात गतिप्रपात कहलाता है। मनुष्य क्षेत्रो५पातगती मने Mr मनुष्य सोपातमति (से तं मणूस खेतोववायगती) આ મનુષ્ય ક્ષેત્રો પપાત ગતિ થઈ (से कितं देव खेत्तोववायगेती ?) हे क्षेत्रो५पातति eat ४२नी ? (देव खेत्तोववायगती चउ विहा पण्णत्ता) हेव क्षेत्रो५पातशति यार अनी ४डी छे (तं जहा) ते २मा प्रशारे (भवणयह खेत्तोववायगती जाव वेमाणिय देव खेत्तोववायगती) अपनपति क्षेत्रो५यात गति यावत् वैमानि क्षेत्रो५५तशति (से तं देव खेत्तोववायगती) मा । क्षेत्रोपातति ४. ટીકાર્થ-વિશેષ વ્યાપાર રૂપ પ્રગનું આના પહેલા નિરૂપણ કરાયું છે અને પ્રયોગના કારણે છે અને અજીવની ગતિ થાય છે, તેથી જ હવે ગતિ સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે હે ભગવન ! ગતિપ્રપાત કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે? ગમન કરવું ગતિ કહેવાય છે. એક દેશથી બીજા દેશમાં પ્રાપ્ત થવું અને એક પર્યાય ત્યાગ કરીને બીજા પર્યાયને પ્રાપ્ત થવું અહીં ગતિનો અર્થ સમજવું જોઈએ. ગતિને પ્રપાત ગતિ પ્રપાત કહેવાય છે. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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