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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद १६ स्. २ जीवप्रयोगनिरूपणम् 'एवं वइप्पओगे वि' एवं-तथा वयःप्रयोगोऽपि चतुर्विधः-सत्यवचःप्रयोगः, मृषावचःप्रयोगः, सत्यमृषावचनप्रयोगः, असत्यामृषावचःप्रयोगरूपः, 'ओरालियसरीरकायप्पभोगे' औदारिकशरीरकायप्रयोगः 'ओरालियमीससरीरकायप्पओगे' औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगः, 'वेउब्वियसरीरकायप्पओगे' वैक्रियशरीरकायप्रयोगः, 'वेउव्वियमीससरीरकायप्पओगे' वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगः, 'कम्मासरीरकायप्पओगे' कार्मणशरीरकायप्रयोगः, पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानामाहारकाहारकमिश्रयोरसंभवात तेषां चतुर्दशपूर्वाधिगमासंभवात् 'मणसाणं पूच्छा' मनुष्याणां कतिविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः ? इति एच्छा, 'गोयमा !' हे गौतम ! 'पण्णरसविहे पोगे पण्णत्ते' मनुष्याणाम्-पञ्चदशविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-सच्चमणप्प. ओगे जाव कम्मासरीरकायप्पओगे' तद्यथा-सत्यमनःप्रयोगो यावत्-मृषामनःप्रयोगः, सत्यामृषामनःप्रयोगः, असत्यामृषामन प्रयोगः, सत्यवचःप्रयोगः, मृपावचःप्रयोगः, सत्यामृषासत्यवचनप्रयोग, मृषावचनप्रयोग, सत्यमृषावचनप्रयोग, असत्यामृषावचनप्रयोग, औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमि शरीरकायप्रयोग, वैक्रियश रीरकायप्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग, कार्मणशरीरकायप्रयोग । पंचेन्द्रिय तिर्यचों में आहारक और आहारकमिश्रप्रयोग नहीं होते हैं। क्योंकि वे चौदह पूर्वो के ज्ञाता नहीं होते और पूर्वो के ज्ञाता हुए विना आहारकशरीर प्राप्त नहीं होता। गौतमस्वामी-हे भगवान् ! मनुष्यों में कितने प्रकार का प्रयोग कहा गया है ? भगवान्-हे गौतम ! मनुष्यों में पन्द्रह प्रकार का प्रयोग कहा गया है, वह इस प्रकार हैं-सत्यमनःप्रयोग, असत्यमनःप्रयोग, सत्यमृषामनःप्रयोग, असत्यमृषामनःप्रयोग, सत्यवचनप्रयोग, असत्यवचनप्रयोग सत्यमृषायचनप्रयोग असत्यामृषावचनप्रयोग, औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरका (४) मसत्या भूषा भन: प्रयोग (५) सत्य क्यन (६) भृषा वयन (७) सत्य भृषा ययन प्रयोग (८) असत्या भूषा या प्रयोग (6) सौदा४ि १२२ प्रयोग (१०) मोहरि मिश्र શરીર કાય પ્રયોગ (૧૧) ક્રિય શરીર કાર્ય પ્રયોગ (૧૨) વૈક્રિય મિશ્ર શરીર કાય પ્રયોગ (१३) अभए शरी२ आय प्रयोग. પંચેન્દ્રિય તિર્યંચમાં આહારક અને આહારક મિશ્ર પ્રયોગ નથી હોતા, કેમકે તેઓ ચૌદ પૂર્વેના જ્ઞાતા હતા નથી અને ચૌદ પૂર્વેના જ્ઞાતા થયા સિવાય આહારક શરીર પ્રાપ્ત નથી થતું. શ્રી ગૌતમસ્વામ–હે ભગવન્! મનુષ્યોમાં કેટલા પ્રકારના પ્રયોગ કહેલા છે? શ્રી ભગવાન–હે ગૌતમ ! મનુષ્યોમાં પંદર પ્રકારના પ્રવેગ કહેલા છે, તે આ પ્રકારે છે– (१) सत्य मनःप्रयो। (२) असत्य मनःप्रयोग (3) सत्यभूषा मनःप्रयोग (४) असत्याभूषा मनःप्रयोग (५) सत्य पयन प्रयोग (6) मसत्य पयन प्रयो। (७) सत्यभृषा चयन प्रयोग (८) असत्याभूषा क्यन प्रयो२॥ (6) मोहानि शरीयप्रय। (१०) मोहा॥२३ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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