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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद १६ स. २ जीवप्रयोगनिरूपणम् ८१७ शरीरकायप्रयोगः, एवम् असुरकुमाराणामपि यावत् स्तनितकुमारराणामपि, पृथिवीकायिकानां परछा, गौतम ! विविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा औदारिकशरीरकायप्रयोगः, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगः, कार्मणशरीरकायप्रयगश्च, एवं यावद् वमस्पतिकायिकानाम्, नवर वायुकायिकानां पञ्चविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-औदारिकशरीरकायप्रयोगः, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगश्च, वैकियो द्विविधः, कार्मणशरीरकायप्रयोगश्च, द्वीन्द्रियाणां पृच्छा, गौतम ! चतुर्विधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-असत्यामृषायचा प्रयोगः, औदारिकशरीरकापप्रयोगः, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगः, कार्मणशरीरकायप्रयोगः, एवं यावत् चतुरिन्द्रियाणां, (एवं असुरकुमाराण वि जाय थपियकुमाराणं) इसी प्रकार असुरकुमारो के भी यावत् स्तनितकुमारों के भी (पुढधिकाइयाणं पुच्छा ?) पृथ्योकायिकों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! तिविहे पओगे पण्णते) हे गौतम ! तीन प्रकार के प्रयोग कहे हैं (तं जहा) वह इस प्रकार (ओरालियसरीरकायप्पओगे, ओरालिय. मीससरीरकायप्पओगे, कम्मासरीरकायप्पओगे य) औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग, कार्मणशरीरकायप्रयोग (एवं जाय वणस्सइ काइयाणं) इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों का (णवरं वाउकाइयाणं पंचविहे पओगे पण्णत्ते) विशेष-वायुकाथिकों का प्रयोग पांच प्रकार का कहा है (तं जहा) यह इस प्रकार (ओरालियकायप्पओगे, ओरालियमीससरीरकायप्पओगे य, वेउब्धिए दुधिहे, कम्मासरीरकायप्पओगे य) औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग, दो प्रकार का वैक्रियक और कार्मणशरीरकायप्रयोग (बेइंदियाणं पुच्छा ?) द्वीन्द्रियों के विषय में पृच्छा? (गोयमा ! चउब्धिहे पओगे पण्णत्ते) हे गौतम ! चार प्रकार का प्रयोग कहा है (तं जहा) यह इस भए। शरी२ ४य प्रयोग ( एवं असुरकुमाराणं वि जाव थणियकुमाराणं) मे प्रकारे અસુરકુમારોના પણ યાવત્ સ્તનતકુમારના પણ (पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) पृथ्वीयाना विषयमा छ ? (गोयमा ! तिविह पओगे पण्णत्ते) गौतम ! ऋण प्रारना प्रयोग ह्या छे (तं जहा) ते आ शते (ओरालियसरीरकायप्पओगे, ओरालियमीससरीरकायप्पओगे, कम्मासरीरकायापओगे) मोहार शरीर आय प्रयोग, मोहरभिशरी२ ४ाय प्रयोग, मीएर शरीर अयप्रयोग ( एवं जाय वणस्सइकाइयाणं) मे ५४ारे यावत् वनस्पति विना ( णवरं वाउकाइयाणं पंचविहे पओगे पण्णत्ते ) विशेष-वायुयानी प्रयोग पाय प्रारना ॥ छ (तं जहा) ते मा ५२ छ ( ओरालियकायपओगे, ओरालियमीससरीरकायापओगे य) मोहारि शरीर ४ाय प्रयोग, मोहारि४ Hि AN२ य प्रयोग(वउव्विए दुविहे, कम्मसरीरकायप्पप्रोगे य) બે પ્રકારના પૈક્રિયક અને કાર્માણ શરીર કાય પ્રયોગ (बेइंदियाणं पुच्छा) द्वीन्द्रियोना विषयमा २७ ? (गोयमा ! चउबिहे पओग पण्णत्ते) प्र० १०३ श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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