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________________ प्रमेयवोधिनी टोका पद १५ स० ११ भावेन्द्रियस्वरूपनिरूपणम् बद्धानि ? पञ्च, कियन्ति पुरस्कृतानि ? पञ्च वा, दश वा, एकादश वा, संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, एवम् असुरकुमारस्यापि, नवरं पुरस्कृतानि पञ्च वा षड वा, संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, एवं यावत् स्तनितकुमारस्यापि, एवं पृथिवीकायिकाकायिकवनस्पतिकायिकस्यापि, द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियस्यापि, तेजस्कायिकवायुकायिकस्यापि एवञ्चैव, नवरम्-पुरस्कृतानि षड् वा, सप्त वा, संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य यावद् ईशानस्य; यथा कितनी (भाबिंदिया) भावेन्द्रियां (अतीता) अतीत हैं ? (गोयमा ! अणंता) हे गौतम ! अनन्त (केवइया बद्धेल्लगा ?) कितनी बद्ध-वर्तमान है (पंच) पांच (केवइया पुरेक्खड ) कितनी भावी हैं ? (पंच वा दस वा, एक्कारस वा, संखेजा चा, असंखेज्जा वा, अणंता वा) पांच, अथवा दश, अथवा ग्यारह, अथवा संख्यात, अथवा असंख्यात अथवा अनन्त (एवं असुरकुमारस्स वि) इसी प्रकार असुरकुमार की भी (नवरं) विशेष (पुरेक्खडा) भाषी (पंच या छ वा, संखेजा या, असंखेजा वा, अणंता वा) पांच, अथवा छह, अथवा संख्यात, अथवा असंख्यात, अथवा अनन्त (एवं जाव थणियकुमारस्स वि) इसी प्रकार यावत् स्तनिकुमार की भी (एवं) इसी प्रकार (पुढविकाइय-आउकाइयवणस्सइकाइयस्स वि) इसी प्रकार पृथ्वीकायिक, अपकायिक, वनस्पतिकायिय की भी (बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदि. यस्स वि) इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय की भी (तेउकाइय बाउकाइयस्स वि) तेजस्कायिक, वायुकायिक की भी (एवं चेच) इसी प्रकार (नवरं) विशेष (छ वा, सत्त चा, संखेजावा, असंखेजा वा अणंता वा) छह, अथवा सात, अथवा संख्यात, अथवा असंख्यात, अथवा अनन्त (पंचिदियतिरिक्खजो(भाव दिया) मान्द्रियो (अतीता) मतीत छ ? (गोयमा ! अणंता) गौतम ! अनन्त (केवइया बघेल्लगा) 32ी पद्ध-वत भान छ ? (पंच) पाय (केवइया पुरेक्खडा) eel भावी छे ? (पंच वो दस वा एक्कादस वा संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा) पांय અથવા દશ, અથવા અગીયાર, અથવા સંપ્યાત, અથવા અસંખ્યાત, અથવા અનન્ત (एवं असुरकुमारस्स वि) समे०४ अरे सुमारनी ५५] (नवर) विशेष (पुरेक्खडा) मापी (पंच वा छ वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा अणता वा) पांय मया छ, अथवा सध्यात 424॥ मसभ्यात, मथ मनत (एवं जाव थणियकुमारस्स वि) मे४ ५१२ यावत् स्तनित भा२नी ५ (एवं) मे ५४१२ (पुढविकाइय-आउकाइय-वणस्तइकाइयस्स वि) से प्रारे पृथ्वीय, 40४f4z, पन२५तियिनी ५ए (बेइंदिय-तेइंदिय-चरिं दियरस वि) प्रहारे द्वन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, यतुरिन्द्रियनी ५५ (तेउ माइय वाउकायस्स वि) ४२४१३४, भने वायु यिनी ५५ (एवंचेच) मे प्रारे (नवर) विशेष (छ वा, सत्त वा, संखे जा वा असं खेज्जा वा अणंता वा) ७, मया सात, अथवा सध्यात, अथवा मध्यात, अ२५॥ प्र० १०० શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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