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________________ प्रज्ञापनास्त्रे एवं एए चेव गमा चत्तारि जाणेयठवा, जे चेव दविदिएसु, णवरं तइयगमे जाणियव्वा जस्स जइ इंदिया ते पुरेक्खडेसु मुणेयव्वा, चउत्थगमे जहेब दचिदिया, जाव सव्वटसिद्धगदेवाणं सव्वटसिद्धगदेवत्ते केवइया भाविदिया अतीता ? णस्थि, बद्धेल्लगा ? संखिजा, पुरेक्खड़ा ? थि । इंदियपयं समत्त" ॥सू० ११॥ छाया-कति खलु भदन्त ! भावेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! पञ्च भावेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा श्रोत्रन्द्रियं यावत्-स्पर्शनेन्द्रियम्, नैरयिकाणां भदन्त ! कति भावेन्द्रियाणि प्रज्ञतानि ? गौतम ! पञ्च भावेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियं यावत्-स्पर्शनेन्द्रियम्, एवं यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि तस्य तावन्ति भणितगानि, यावद वैमानिकानाम्, एकैकस्य खलु भदन्त ! नैरयिकस्य कियन्ति भावेन्द्रियाणि अतीतानि ? गौतम ! अनन्तानि, कियन्ति भावेन्द्रियवक्तव्यता शब्दार्थ-(कइ णं भंते ! भाविदिया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! भावेन्द्रियां कितनी कही हैं ? (गोयमा ! पंच भाविदिया पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच भावे न्द्रियां कही हैं (तं जहा-सोइंदिए जाव फासिदिए) ये इस प्रकार-श्रोत्रेन्द्रिप यावत् स्पर्शनेन्द्रिय (नेरइयाणं भंते ! कति भाविंदिया पण्णत्ता?) हे भगवन् ! नारकों की भावेन्द्रियां कितनी कही हैं ? (गोयमा ! पंच भाविदिया पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच भावेन्द्रियां कही हैं (तं जहा-सोईदिए जाव फासिदिए) श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय (एवं जस्स जइ इंदिया) इस प्रकार जिसको जितनी इन्द्रियां हैं (तस्स तइ भाणियव्वा) उसकी उतनी कहनी चाहिए (जाव वेमाणियाणं) यावत् वैमानिकों की। (एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स) हे भगवनू ! एक-एक नारक की (केवइया) मावन्द्रिय-वतव्यता शहाथ-(कइ णं भंते ! भावि दिया पण्णत्ता) हे मावन् मावेन्द्रिय सी डी छ ? (गोयमा ! पंच भावि दिया पण्णत्ता) गौतम ! पांय मान्द्रिय सी छे (तं जहा-सो इंदिए जाब फासेंदिप) ते २मा प्रारे-श्रीन्द्रिय यावत् २५शनन्द्रिय (नेरहयाणं भंते। कइ भापिं दिया पण्मात्ता ?) : मन् ! नानी सावन्द्रियो ली ही छ ? (गोयमा ! पंच भावि दियो पण्णत्ता) है गौतम ! पांच सावन्द्रियो हीछे (तं जहा-सोइंदिए जाव फासि दिए) ते माशत-श्रीन्द्रिय यावत् २५शनन्द्रिय (एवं जस्स जइ इंदिया) २ रे भनी 2ीन्द्रियो (तस्स तइन्माणियव्या) तेनी तेजी की नये (जाव वेमाणियाणं) યાવત વૈમાનિકોની (एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स) हे भगवन ! ४ मे नानी (केवइया) सी श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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