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________________ प्रज्ञापनास्त्रे पुरस्कृतानि ? अष्ट वा; षोडश वा, चतुर्विशति वा, संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा, अनन्तानिवा, सर्वेषां मनुष्य वाणाम्, पुरस्कृता मनुष्यत्वे कस्यचित् अस्ति कस्यचिनास्ति एवं न उच्यते । वानव्यन्तरज्योतिष्कसौधर्मक यावत् ग्रैवेयकदेवत्वे अतीतानि अनन्तानि, बद्धानि न सन्ति पुरस्कृतानि कस्यचिद् सन्ति कस्यचिन्न सन्ति, यस्य अस्ति अष्ट वा, षोडशा वा, चतुर्विंशतिर्वा, संख्येयानि वा असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, एकैकस्य खल भदन्त ! नैरयिकस्य विजयवैजयन्तजयन्तापरजित देवत्वे कियन्ति द्रव्येन्द्रियाणि अतीतानि ? न सन्ति, केवइया पुरेक्खडा) विशेष-आगामी कितनी ? (अट्ट वा सोलह वा, चउवीसा चा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा) आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त (सव्वेसि मणूसवजाणं) मनुष्य के सिवाय सबकी (पुरेक्खडा) आगामी (मणूसत्ते) मनुष्यपने (कस्सइ अस्थि, कस्सइ नत्थि) किसी की हैं, किसी की नहीं (एवं ण बुच्चइ) ऐसा नहीं कहा जाता (वाणमंतरजोइसियसोहम्मग जाव गेवेज्जगदेवते अतीता अणंता) वानव्यन्तर ज्योतिष्क, सौधर्म यावत् ग्रैवेयक देवपने अतीत अनन्त (वद्धेल्लगा णस्थि) बद्ध नहीं हैं (पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि) आगामी किसी के हैं, किसी के नहीं हैं (जस्स अस्थि अट्ट वा, सोलस वा, चउवीसा वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा) जिसकी हैं, उसकी आठ सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं। (एगमेगस्सणं भते! नेरइयस्स) हे भगवन् ! एक-एक नारक की (विजयवेज. यंतजयंतअपराजितदेवत्ते केवइया दविदिया अतीता?) विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित देवपने कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियां कही ? (णत्थि) नहीं है (केवइया (जहा असुरकुमारत्ते) रेम असु२ भा२ ५२ (मणूसत्ते वि एवं चेव) मनुष्य पणे पण मे। मारे (नवरं केवइया पुरेक्खडा) विशेष- मागाभी दी ? (अट्ठ वा, सोलस वा चवीसा वा संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा) माठ, सोस, योवीस, सध्यात, असभ्यात म२१॥ मनन्त (सव्वेसि मणूसवज्जाणं) मनुष्यन सिवाय मधानी (पुरेक्खडा) भाभी (मणूसत्ते) मनुष्य ५ (कस्सइ अस्थि, कस्सइ नत्थि) छनी छ भने अनी नथी (एव ण वुच्चइ) मेनथी ४ातु (वाणमंतरजोइसियसोहम्मग जाव गेवेज्जगदेवत्ते अतीता अणंता) वानव्यन्तर, ज्योति०४, सोधभा, यावत् अवेय४ हेवपणे मतीत मनन्त (बद्धेल्लगा नत्थि) मद्ध नथी (पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि) मामी ४२ सय छ, न नथी हाती (जस्स अस्थि अट्ठ वा, सोलस वा, चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जावा) रेनी छे તેની આઠ, સોળ, ચોવીસ, સંખ્યાત, અસંખ્યાત અથવા અનત છે. __ (एगमेगस्सणं भंते ! नेरड्यस्स) ७ भगवन् ! ४-४ न॥२४नी (विजयवे जयंतजयंत अपराजितदेवत्ते केवइया दबिंदिया अतीता ?) विय, वैश्यन्त, स्यन्त, अ५२लितपणे Beeी मतीत द्रव्येन्द्रिय ४ी छ ? (गत्थि) नयी (केवइया पुरेक्खडा) भागामी ३८क्षी ? શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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