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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ १० १० इन्द्रियादिनिरूपणम् __७३१ खलु भदन्त ! नैरयिकस्य द्वीन्द्रियस्वे कियन्ति द्रव्येन्द्रियाणि अतीतानि ? गौतम ! अनन्तानि, कियन्ति बद्धानि ? गौतम ! न सन्ति, क्रियन्ति पुरस्कृतानि ? गौतम ! कस्य चित् सन्ति, कस्यचिन्नसन्ति, यस्य सन्ति द्वे वा, पोडश वा, चत्वारि वा, संख्येयानि वा असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, एवं त्रीन्द्रियाणामपि, नवरं, पुरस्कृता चत्वारि वा, अष्टवा, द्वादश वा, संख्ये यानि व, असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, एवं चतुरिन्द्रियाणामपि, नवरं पुरस्कृता षट् वा, द्वादश वा, अष्टादश वा, संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकत्वे यथा असुरकुमाराणाम् । मनुष्यत्वेप्येवमेव, विशेषस्तु कियन्ति (एगमेगस्त णं भंते ! नेरझ्यस्स बेइंदियत्ते केवइया दविदिया अतीता ?) हे भगवन् ! एक-एक नारक की दीन्द्रियपने अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी? (गोयमा ! अणंता) हे गौतम ! अनन्त (केवइया बद्धेल्लगा) बद्ध कितनी? (गोयमा ! त्थि) हे गौतम ! नहीं हैं (केवड्या पुरेक्खडा) आगामी कितनी? (गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइ नत्थि) हे गौतम ! किसी की हैं, किसी की नहीं (जस्सस्थि दो वा चत्तारि वा, संखेजा वा असंखेज्जा वा, अणंता वा) जिसकी हैं, दो या चार या संख्यात, या असंख्यात या अनन्त हैं (एवं तेइंदियत्ते वि) इसी प्रकार त्रीन्द्रियपने भी (नवरं पुरेक्खडा चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा) विशेष-आगामी चार, आठ, बारह, संख्यात असंख्यात अथवा अनन्त हैं (एवं चउरिदियत्ते वि) इसी प्रकार चतुरिन्द्रियपने भी (नवर) विशेष (पुरेक्खडा छ वा, बारस वा, अट्ठारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणता वा) आगामी छह, बारह, अठारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त। (पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्ते) पंचेन्द्रिय तिर्यचपने (जहा असुरकुमारत्ते) जैसे असुरकुमारपने (मणूसत्ते वि एवं चेव) मनुष्यपने भी इसी प्रकार (नवर (एगमेगरसणं भंते ! नेरइयस्स बेइंदियत्ते केवइया दब्बि दिया अतीता १) 3 मावन् ! ४-४ ना२४ीनी दीन्द्रय ५२ द्रव्येन्द्रिय सी ? (गोयमा ! अणंता) गौतम ! मनत (केवइया बद्धेल्लगा) पद्धटसी ? (गोयमा ! णत्थि) 3 गौतम ! छे नाह (केवइया पुरे क्खडा) आगामी ४८सी ? (गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि) गौतम ! डाय छ । नयी खाती (जस्सत्थि दो वा चत्तारि वा, संखेज्जा वा, असं खेज्जा वा, अणंता वा) रेन छे, मे मगर या२ मथ। सभ्यात सग२ असण्यात मथवा रन डाय छे. (एवं तेइंदियत्ते वि) से शत त्रीन्द्रियपणे ५५ (नवरं पुरेक्खडा चत्तारि वा अदुवा बारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा, अणंता वा) विशेष-मामाभी, यार, मा8, मा२, सध्यात, मसण्यात अथवा मनन्त छ (एवं चरिंदियत्ते वि) मे अरे यतुरिन्द्रिय पणे ५१ (नवरं) विशेष (पुरेक्खडा छ वा बारस वा, अद्वारस वा संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा अणंता वा) मागाभा छ, मार मार सध्यात, असभ्यात सय मनन्त (पाचदियतिरिक्खजोणियत्ते) पयन्द्रियतिय ययानि શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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