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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० १० इन्द्रियादिनिरूपणम् स्कृतानि असंख्येयानि, सर्वार्थसिद्धकदेवानां पृच्छा, गौतम ! अतीतानि अनन्तानि, वद्धामि संख्येयानि, पुरस्कृतानि संख्येयानि, एकैकस्य खलु नैरयिकस्य नैरयिकत्वे कियन्ति द्रव्येन्द्रियाणि अतीतानि ? गौतम ! अनन्तानि, कियन्ति बद्धानि? गौतम ! अष्टौ, कियन्ति पुरस्कृतानि ? गौतम ! कस्यचित् सन्ति, कस्यचित् न सन्ति, यस्य सन्ति अष्टौ वा, षोडश वा, चतुर्विशति वी, संख्येयानि वा असंख्येयानि वा अनन्तानि वा, एकैकस्य खलु नैरयिकस्य असुरकुमारत्वे कियन्ति द्रव्येन्द्रियाणि अतीतानि ! गौतम ! अनन्तानि, कियन्ति बद्धानि ? गौतम ! न अतीता अणंता, बद्धेल्लगा असंखेज्जा, पुरेक्खडा असंखेज्जा) हे गौतम! अतीत अनन्त, बद्ध असंख्यात, आगामी असंख्यात (सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं पुच्छा?) सर्वा. सिद्ध के देवों की पृच्छा ? (गोयमा ! अतीता अणंता) हे गौतम ! अतीत अनन्त (बद्धेल्लगा संखेजा) बद्ध संख्यात (पुरेक्खडा संखेज्जा) आगामी संख्यात। (एगमेगस्सण नेरइयस्स नेरइयत्त केवइया दविदिया अतीता ?) एक-एक नारक की नारकपने में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियां ? (गोयमा ! अर्णता) हे गौतम ! अनन्त (केवइया बल्लिगा) कितनी बद्ध ? (गोयमा ! अट्ट) हे गौतम । आठ (केवइया पुरेक्खडा) अगामी कितनी ? (गोयमा ! कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि) हे गौतम ! किसी की हैं, किसी की नहीं (जस्सत्थि अट्ठ वा, सोलस वा, चउवीसा वा, संखेज्जा वा असंखेज्जा वा, अणंता वा) जिसकी हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं। (एगमेगस्सणं नेरइयस्स अप्लरकुमारत्ते केवइया दन्विदिया अतीता) एकएक नारक की असुरकुमारपने कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियां (गोयमा ! अणंता) बघेल्लगा असंखेज्जा पुरेक्खडा असंखेज्जा) गौतम ! अतीत, अनन्त, माद असण्यात, અગામી અસંખ્યાત (सत्वदृसिद्धगदेवाणं पुच्छा ?) साथ सिद्ध हेवानी २७.१ (गोयमा ! अतीता अणंता) गौतम ! अतीत मनन्त (वद्धेल्लगा संखेज्जा) म सध्यात (पुरेक्खडा संखेज्जा) અગામી સંખ્યાત (एगमेगस्सणं नेरइयस्स नेरइयत्ते केवइया दव्वि दिया अतीता) मे४ मे ना२नी ना२४. पामा यी मतीत द्रवन्द्रियो ? (गोयमा ! अणता) गौतम ! अनन्त (केवइया बद्दल्लगा) टक्षी मर (गोयमा ! अ) गौतम ! मा8 (केवइया पुरेक्खडा) मा॥भी मी (गोयमा ! कस्सइ णत्थि कस्सइ नत्थि) 8 गौतम ! !ना छ अनी नथी (जस्सत्थि, अदुवा, सोलसवा,चवीसा वा, संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा) की छे तनी 418, सास, ગ્રેવીસ, સંખ્યાત, અસંખ્યાત અથવા અનંત છે (एगमेगस्स णं नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवइथा दबिदिया अतीता) मे ४ नानी असुरभा२५४ानी यतीत द्रव्येन्द्रिय सी छ ? (गोयमा ! अणंता) 3 गौतम ! अनन्त प्र० ९२ श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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