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प्रमेयबोधिनी टोका पद ९ सू. १ योनिपदनिरूपणम् तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोका जिवाः शीतोष्णयोनिका, उष्णयोनिका असंख्येयगुणाः, अयोनिका अनन्तगुणाः, शीतयोनिकाः अनन्तगुणाः ॥ सू० १॥ ___टीका-अष्टमपदे प्राणिनां संज्ञा परिणामाः प्ररूपिताः, अथ नवमे पदे तेषामेव योनीः प्ररूपयितुमाह-'कइविहाणं भंते ! जोणी पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कतिविधा खलु योनिः प्रज्ञप्ताः ? तत्र योनिरित्यस्य 'यु मिश्रणे' इत्यस्मात् युवन्ति-तैजस कार्मण शरीरवन्तः सन्तः प्राणिनः औदारिकादि शरीरप्रायोग्यपुदगलस्कन्धसमुदायेन मिश्री. भवन्ति अस्यामिति व्युत्पत्या योनिः-उत्पत्तिस्थानम् , औणादिको नि प्रत्ययो बोध्यः, वा, तुल्ला या, विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहत, तुल्य या विशेषाधिक है ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सीतोसिणजोणिया) गौतम ! सब से कम जीय शीतोष्णयोनि वाले हैं (उसिणजोणिया असंखेजगुणा) उष्णयोनिक असंख्यातगुणा हैं (अजोणिया अणंतगुणा) अयोनिक अनन्तगुणा हैं (सीतजोणिया अणंतगुणा) शीतयोनिक अनन्तगुणा हैं।
टीकार्थ-आठवें पद में जीवों के संज्ञापरिणामों का प्ररूपण किया, इस नवम पद में उन्हीं की योनियों का निरूपण करते हैं-गौतम ! प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! कितने प्रकार की योनियां कही गई हैं ?
'यु मिश्रणे' धातु से 'योनि' शब्द बना है । अतः जिसमें मिश्रण होता है, वह योनि कहलाती है। तैजस एवं कार्मण शरीर वाले प्राणी जिसमें औदारिक आदि शरीरों के योग्य पुद्गलस्कंधों के समुदाय के साथ मिश्रित होते हैं अर्थात् एकमेक होते हैं, वह योनि है, जिसका तात्पर्य है उत्पत्ति का स्थान । योनि शब्द में उणादि से 'नि' प्रत्यय हुआ है। તુલ્ય અગર વિશેષાધિક છે?
(गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सीतोसिणजोणिया), गौतम ! अधाथी छ। १ शीत योनिवामा छ (उसिणजोणिया असंखेज्जगुणा) Sty योनि मसभ्यात छ (अजोणिया अणंतगुणा) अयोनि मनन्त छ (सीतजोणिया अणंतगुणा) शीतयोनि અનન્તગણ છે
ટીકાર્થ-આઠમા પદમાં જીવની સંજ્ઞા પરિણામેનું પ્રરૂપણ કરાયું છે, આ નવમા પદમાં તેમની નિયોનું નિરૂપણ કરે છે -
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-હે ભગવન ! કેટલા પ્રકારની નિયો રહેલી છે? “ मिश्रणे' धातुथी योनि v४ मने छ. तथा भा (भा उय छ ते योनि पाय छे. તૈજસ તેમજ કાર્પણ શરીરવાળા પ્રાણી જેમાં ઔદારિક આદિ શરીરને ચગ્ય પુદ્ગલ સ્કના સમુદાયની સાથે મિશ્રિત થાય છે અર્થાત્ એકમેક થાય છે, તે નિ છે, જેનું તાત્પર્ય છે ઉત્પત્તિનું સ્થાન, યુનિ શબ્દમાં વારિ થી નિ પ્રત્યય થયે છે,
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श्री प्रशान। सूत्र : 3