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________________ प्रमेवबोधिना टीका पद १५ सू० ८ इन्द्रियोपचयनिरूपणम् उपयोगाद्धा विशेषाधिका, थोत्रेन्द्रियस्य उत्कृष्टा उपयोगाद्धा विशेषाधिका, घ्राणेन्द्रियस्य उत्कृष्टा उपयोगाद्वा विशेषाधिका, जिह्वेन्द्रियस्य उत्कृष्टा उपयोगाद्धा विशेषाधिका, स्पर्शने. न्द्रियस्य उत्कृष्टा उपयोगाद्धा विशेषाधिका५, कतिविधा खलु भदन्त ! इन्द्रियावग्रहणा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! पञ्चविधा इन्द्रियावग्रहणा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियावग्रहणा यावत् स्पर्शनेन्द्रियावग्रहणा, एवं नैरयिकाणां यावद् वैमानिकानाम्, नवरं यस्य यायन्ति इन्द्रियाणि सन्ति ६॥सू० ८॥ हिंतो उयोगद्धाहितो) स्पर्शनेन्द्रिय के जघन्य उपयोगद्धा से (चक्खिदियस्त उक्कोसिया उयोगद्धा विसेसाहिया) चक्षुइन्द्रिय के उत्कृष्ट उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं (सोइंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया) श्रोत्रेन्द्रिय के उस्कृष्ट उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं (घाणिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा यिसेसाहिया) घ्राणेन्द्रिय के उत्कृष्ट उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं (जिभिदियस्स उक्कोसिया उपओगद्धा विसेसाहिया) जिहवेन्द्रियस्स का उत्कृष्ट उपयोगद्धा विशेषाधिक है (फासिदियस्स उक्कोसिया उचओगद्धा विसे साहिया) स्पर्शने. न्द्रिय के उत्कृष्ट उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं। (कइविहा णं भंते ! इंदियओगाहणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! इन्द्रिय-अवग्रहण कितने प्रकार का है ? (गोयमा! पंचविहा इंदियओगाहणा पण्णता?) हे गौतम ! पांच प्रकार का इन्द्रिय अवग्रहण कहा है (तं जहा-सोइंदिय ओगाहणा जाव फासिदिय ओगाहणा) यह इस प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय अवग्रहण यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-अवग्रहण (एवं नेरइयाणं जाय वेमाणियाणं) इसी प्रकार नारकों यावत् वैमानिकों की (नवरं जस्स जइ इंदिया अत्थि) विशेष यह कि जिप्लके जितनी इन्द्रियां हैं। (फामि दियस्स जहणियाहि तो उवओगद्धाहितो) २५श नन्द्रियना धन्य उपयोगाद्धाथी (चक्विंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया) यशुन्द्रियन •ट उपयोद्धा विशेषाधिर छे. (सोइंदियस्स उक्कोसिया उत्रओगद्धा विसेसाहिया) श्रोत्रेन्द्रियन Gbe उपयोगी विशेषाधिन छ (पाणिं दियस्स उनकोसिपा अओंगद्वा विसे साहिया) प्राणन्द्रियना Srge अ५योगाचा विसपाथि छ (जिडिमदिवस उक्कोसिया उवओगद्धः) rन्द्रियाना She उपयोगाद्ध विशेषाधिः छ (फासि दियस्स उनकोसिया उपओगद्धा विसेस हिया) २५३ नेન્દ્રિયના ઉત્કૃષ્ટ ઉપગારદ્ધા વિશેષાધિક છે (कइविहाणं भंते ! इंदिय ओगाहणा पण्णत्ता ?) हे मापन् ! न्द्रय २०१७ ॥ ४२॥ छ ? (गोयमा ! पंचविहा इदियओगाहणा पण्णत्ता) : गौतम ! पांय मारना छन्द्रिय अ५४ सा छ (तं जहा-सोइंदिओगाहणा जाव फासिदिय ओगाहणा) ते ॥ २ श्रोत्रेन्द्रिय सहए। यावत् १५शनेन्द्रिय ARs(एवं नेरइयाणं जाव चेमाणिया) से प्रारे ना२। यावत् वैमानिकानी (नवरं जस्स जइ इंदिया अस्थि) विशेष मेछ કે જેમને જેટલી ઈન્દ્રિયે છે. श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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