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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० ८ इन्द्रियोपचयनिरूपणम् tri जयन्धिकायाम् उपयोगाद्धायाम् उत्कृष्टायाम् उपयोगाद्धायाम्, जघन्योत्कृष्टायामुपयोगाद्धायां कतरा कतराभ्योऽल्पा या, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्वोका चक्षुरिन्द्रियस्य जयन्धिका उपयोगाद्धा, श्रोत्रेन्द्रियस्य जघन्यिका उपयोगाद्धा विशेषाधिका, घ्राणेन्द्रियस्य जधन्यिका उपयोगाद्धा विशेषाधिका, जिवेन्द्रियस्व जयन्यिका उपयोगाद्धा विशेषाधिका, स्पर्शनेन्द्रियस्य जघन्यिका उपयोगाद्धा विशेषाधिका, उत्कृष्टायापयोगाद्धायां सर्वस्तोका चक्षुरिन्द्रयस्य उत्कृष्ट उपयोगाद्धा, श्रोत्रेन्द्रियस्य उत्कृष्टा उपयोयाणं) हे भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के ( जहणणयाए उबओगद्धाए, उक्कोसियाए उबओगद्धाए) जघन्य उपयोगाद्धा और उत्कृष्ट उपयोगद्धा में ( जहन्नुकोसियाए उचओगदाए) जघन्योत्कृष्ट उपयोगद्धा में ( कयरे कमरे हिंतो) कौन किससे (अप्पा या बहुयाचा, तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? (गोयमा ! सव्वस्थोवा चक्खिदियस्स जहण्णिया उचओगद्धा) हे गौतम ! सब से कम चक्षुरिन्द्रिय का जघन्य उपयोगद्धा है (सोइंदियस्स जहण्णिया उपभोगद्धा विसेसाहिया) श्रोत्रेन्द्रिय का जघन्य उपयोगद्वा विशेषाधिक है (घाणिदियस्स जहणिया उपओगद्धा विसेसाहिया) घ्राणेन्द्रिय की जघन्य उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं (जिभिदियस्स जहण्णिया उवओगद्धा विसेसाहिया) जिह्येन्द्रिय का जघन्य उपयोगद्धा विशेषाधिक हैं ( फासिंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया) स्पर्शनेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक हैं (उक्कोसियाए उगाए सव्वत्थोया चक्खिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा) उत्कृष्ट उपयोगद्धा में सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगद्धा है (सोइंदियस्स ६९१ (एएसिणं भंते ! सोई दियचक्खिदियत्रार्णिदियजिब्भिंदियफा सिंदियाणं) हे लुगवन् ! या श्रोत्रेन्द्रिय, यक्षुरिन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय मने स्पर्शनेन्द्रियना ( जहण्णयाए उदओगाए, उक्कोसियाए उवओगद्ध(ए) ४धन्य उपयोगाद्धा भने उत्कृष्ट उपयोगाद्धामां (जहकोसियाए उवओगद्वार) धन्योत्कृष्ट उपयोगाद्धामां ( कयरे कयरेहिंतो) आरा अनाथी ( अप्पा वा' बहुया वा तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ?) अप, वधारे, तुझ्या विशेषाधि छे ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स जहण्णिया उपओगद्धा) हे गौतम! प्रधाथी थोडा यक्षुरिन्द्रियना धन्य उपयोगाद्धा छे (सोइंदियस्स जहण्णिया उजओगद्धा विसेसाहिया) ओन्द्रियना धन्य उपयोगाद्धा विशेषाधि के (घाणिदियरस जहणिया जयओगद्धा विसेसाहिया) घ्राणेन्द्रियना धन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक छे (जिब्भिंदियरस जहष्णिया उपओगद्धा विसेसाहिया) निह्वेन्द्रियना धन्य उपयोगाद्धा विशेषाधि छे (फ सिंदियस्स जहणिया उव. ओगद्धा विसेसाहिया) स्पर्शनेन्द्रियना धन्य उपयोगाद्धा विशेषाधि (उक्कोसियाए उबओगद्धाए सच्वत्थोपा चक्खिंदियस्स उक्कोसिया उपओगद्धा) उत्सृष्ट श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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