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प्रज्ञापनासूत्रे पञ्चदशपदे द्वितीयोदेशः मूलम्-गाहा-इंदिय उवचय१, णिवत्तणा य२ समया भवे असं. खेज्जा३।लद्धी४ उवओगद्धं५ अप्पाबहुए विसेसाहिया ॥१॥ ओगाहणाद, अवाए७, ईहा८ तह वंजगोग्गहे ९-१०, चेव । दविदिय११ भाविदिय१२ तीया बद्धा पुरक्खडिया ॥सू० २॥
छाया-गाथा-इन्द्रियोपचयः १, निवर्तमा २ च समया भवेयुरसंख्येयाः ३, लब्धिः ४ उपयोगाद्धा ५, अल्पबहुत्वे विशेषाधिकाः ॥१॥ अवग्रहणम् ६, अवायः ७, ईहा ८, तथा व्यञ्जनावग्रहश्चैव ९-१० । द्रव्येन्द्रियम् ११ भावेन्द्रियम् १२ अतीतबद्धपुरस्कृतानि ॥२॥
टीका- पञ्चदशपदस्य प्रथमो देशार्थ प्ररूप्य सम्प्रति द्वितीयोदेशार्थ तदर्थसंग्राहकगाथाद्वयमादावाह-'इंदियउवचय १ णिवत्तणाय २ समया भवे असंखेज्जा ३ । लद्धी ४ उवओगढ़ ५, अप्पाबहुए विसेसाहिया ॥१॥ ओगाहणा ६, अवाए ७ ईहा ८ तह वंजणोग्गहे
पंद्रहवां पद-द्वितीय उद्देशक शब्दार्थ-द्वारसंग्रह गाथा का शब्दार्थ इस प्रकार है-(इंदियउवचय) इन्द्रियोपचय (निव्वत्तणाय) और निर्वतना (समया भवे असंखेना) असंख्यात समय होते हैं (लद्धी) लब्धि (उवओगळू) उपयोगकाल (अप्पाबहुए) अल्पवहुत्व (विसेसाहिया) विशेषाधिक । १॥
(ओगाहणा) अवगाहना (अवाए) अवाय (ईहा) ईहा (तह वंजणोग्गहे) तथा व्यंजनावग्रह (चेव) और (दबिंदिय) द्रव्येन्द्रिय (भाविदिय) भावेन्द्रिय (तीया) अतीत (बद्धा) बद्ध (पुरक्खडिया) आगे हानेवाली । २॥
टीकार्थ-पन्द्रहवें पद के प्रथम उद्देशक की प्ररूपणा करके अब दूसरे उद्देशक की परूपणा करने के लिए उसमें निरूपित विषयों का संग्रह करनेवाली दो गाथाएं प्रथम कहते हैं
५४२ ५४-द्वितीय देश४ शहाथ-१२ सय थान हाथ मा प्ररे छ-(इंदिय उवचय) धन्द्रियो५यय (निवत्तणाय) भने नितना (समया भवे असंखेज्जा) असण्यात समय थाय छ (लद्धी) alqध (उवओगई) 3५॥ ४॥ (अप्पा बहुए) ५८५ महत्व (विसे साहिया) विशेषाधि४ । १ ।
(ओगाहणा) २५408न (अवाए) माय (ईहा) 8 (तह वंजणो गाहे) तथा व्यसना १ (चेव) मने (दव्विंदिय) द्रन्द्रिय (भाविदिय) नावन्द्रिय (तीया) अतीत (बद्धा) म (पुरक्खडिया) मा थनारी
ટીકાથ–પંદરમા પદના પ્રથમ ઉદ્દેશકની પ્રરૂપણા કરીને હવે બીજા ઉદ્દેશકની પ્રરૂપણ કરવાને માટે તેમાં નિરૂપિત વિષચેના સંગ્રહ કરવાવાળી બે ગાથાઓ પ્રથમ કહે છે
श्री प्रशान। सूत्र : 3