________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० ६ अनगाराविषयक वर्णनम्
६४९
-
द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा उपयुक्ताश्च अनुपयुक्ताश्च तत्र खलु ये ते अनुपयुक्तास्ते खलु न जानन्ति न पश्यन्ति आहरन्ति, तत्र खलु ये ते उपयुक्तास्ते खलु जानन्ति पश्यन्ति आहरन्ति, तत् एतेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते - अस्त्येके जानन्ति यावद् अस्त्येके आहरन्ति || सू० ६ ॥ टीका - अथेन्द्रियविषयाधिकारात्तद्विशेषं दशमं द्वारं प्ररूपयितुमाह - 'अणगारस्स णं भंते ! भाविप्पणी मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स' हे भदन्त ! अनगारस्य खलु श्रमणपर्याप्तक और अपर्याप्तक (तत्थ णं जे ते अपज्जन्तगा) उनमें जो अपर्याप्त हैं ( ते णं न जाणंति, न पासंति) वे नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं और (आहारे ति) आहार करते हैं (तत्थ णं जे ते पज्जन्तगा) उनमें जो पर्याप्त हैं (ते दुविहा पण्णत्ता) वे दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार ( उवउत्ता य अणुवउत्ता घ) उपयुक्त - उपयोग लगाए हुए और अनुपयुक्त अर्थात् जिन्होंने उपयोग न लगाया हो (तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता) उनमें जो अनुपयुक्त हैं (ते णं न जाणंति, न पासंति) वे नहीं जानते, नहीं देखते (आहारे ति) और आहार करते हैं (तत्थ णं जे ते उवउत्ता) उनमें जो उपयुक्त हैं (ते णं जाणंति पासंति) वे जानते हैं देखते हैं (आहारे ति) आहार करते हैं (से एएणडेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि (अत्थेगइया जाणंति, जाब अत्थेगइया आहारे ति) कोई जानते हैं, यावतू कोई आहार करते हैं ।
टीकार्थ- इन्द्रियों के विषय का प्रकरण होने से उसी ते संबंधमें विशेष वक्तव्यता प्रकट करने के लिए दशम द्वार की प्ररूपणा की जाती है
जिसने अपनी आत्माको ज्ञान, दर्शन और चारित्र से तथा विशिष्ट तपस्या (पज्जन्तगा य अपज्जतगा य) पर्यास भने अपर्याप्त (तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा) तेमां ने अययस छे (ते णं न जानंति, न पासंति) तेथे नथी लघुता, नथी हेजता (आहार ति) भाडार ४रे छे (तत्थ णं जे ते पज्जतगा) तेमां ने पर्याप्त छे (ते दुविहा पण्णत्ता) ते मे अहारना उद्या छे (तं जहा) तेथे या प्रकारे छे ( उवउत्ता य अणुवत्ताय ) उपयुक्त अने उपयोग रामेला भने अनुपयुक्त अर्थात् नेयोगे उपयोग न य होय (तत्थ णं जे ते अणुउवत्ता) तेमां ने अनुपयुक्त छे (तेणं न जाणंति न पासंति) तेथे। नथी लघुता } नथी द्वेता (आहारे ति) आहार उरे छे (तत्थ णं जे ते उवउत्ता) तेमां ने उपयुक्त छे (तेणं जाणंति पासंति) तेथे। लो छे, हे छे (आहारे ति) आहार ४२ छे से एएणणं गोयमा ! एवं वच्चइ) थे हेतुथी हे गौतम! येवु देवाय छे ! ( अत्येगइया जाणंति जाव अत्येगइया आहारे ति) अर्थ अर्थ हो छे, यावत् अध अर्थ माहार हरे छे
ટીકા'-ઇન્દ્રિયાના વિષયનું પ્રકરણ હાવાથી તેમના સમ્બન્ધમાં વિશેષ વક્તવ્યતા પ્રગટ કરવા માટે દશમ દ્વારની પ્રરૂપણા કરાય છે—
જેમણે પેાતાના આત્માને જ્ઞાન દર્શીન અને ચારિત્રથી તથા વિશિષ્ટ તપસ્યાથી ભાવિત
प्र० ८२
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩