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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० ६ अनगारविषयकवर्णनम् । निर्जरापुद्गलानां नो किश्चिद् अन्यत्वं वा, नानात्वं वा, अवमत्वं वा, तुच्छत्वं वा, गुरुत्वं वा, लघुत्वं वा, जानाति पश्यति, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-छमस्थः खलु मनुष्यस्तेषां निर्जरापुद्गलानां नो किश्चिदन्यत्वं वा यावद जानाति पश्यति, एवं सूक्ष्माः खलु ते पुद्गला: प्रज्ञप्ताः श्रमणायुष्मन् ! सर्व लोकमपि च खलु ते अवगाह्य तिष्ठन्ति, नैरयिकाः खलु भदन्त ! निर्जरापुद्गलान् किं जानन्ति पश्यन्ति आहरन्ति ? उताहो न जानन्ति, न पश्यन्ति, आहरन्ति ? गौतम ! नैरयिकाः निर्जरापुद्गलान् न जानन्ति न पश्यन्ति, आहरन्ति, एवं यावत्से (तेसि णिज्जरापोग्गलाणं) उन निर्जरा पुद्गलों के (णो) नहीं (किंचि) किंचित् (आणत्तं वा नाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा) अन्यत्व, भिन्नत्व, हीनत्व, तुच्छत्व, गुरुत्व अथवा लघुत्व को (जाणइ पासइ) जानता देखता है (से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि (छउमस्थेणं मणूसे) छद्मस्थ मनुष्य (तेसिं णिज्जरा पोग्गलाणं) उन निर्जरा पुद्गलों के (नो) नहीं (किंचि) कुछ भी (आणत्तं वा जाव जाणइ पासइ) अन्यत्व को यावत् जानता-देखता है (एवं सुहमाणं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो!) इस प्रकार के सूक्ष्म वे पुद्गल कहे गए हैं आयुष्मन् श्रमणो ! (सव्वलोगं पि य णं ते ओगाहित्ताणं चिटुंति) वे समस्त लोक को अवगाहन करके रहते हैं। (नेरइया णं भंते ! णिज्जरापोग्गले किं जाणंति पासंति, आहारेंति) हे भगवन् ! नारक निर्जरा पुद्गलों को क्या जानते देखते हैं और आहार करते हैं ? (उदाहु) अथवा (न जाणइ न पासइ, आहारेइ) नहीं जानते, नहीं देखते और आहार करते हैं ? (गोयमा ! नेरइया णिज्जरापोग्गले न जाणंति न णिजरा पोग्गलाणं) ते नि साना (नो) नही (किंचि) यित् (आणत्तं वा नाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा) अन्यत्व, मिन्नत्व, हीनत्व, तु२७१, ४३.१ अथवा सधुत्वने (जाणइ पासइ) and छ, हेथे छ, (से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं पुच्चइ) से तुथी 3 गौतम ! मे ४उपाय छ है (छउमत्थेगं मणूसे) छमस्थ मनुष्य (तेसि णिज्जरा पोग्गलाणं) ते नि। पुसा (नो) नही (किंचि) is ५५५ (आणत्तं वा जाव जाणइ पासइ) अन्यत्पने यावत् छे, हेणे छ (एवं सुहुमाणं ते पोग्गला पण्णत्ता समणा उसो) से प्रधान सूक्ष्म ते पुस ४i छेडे आयुष्मन् श्रम ! (सव्वं लोग वि य णं ते ओगाहित्ताणं चिट्ठति) ते समस्त वानी आना श२ २३ छ (नेरइयाणं भंते! णिज्जरापोग्गले किं जाणंति पासंति आहारेति) हे सावन् ! ना२४ निश दासान शुगए छ, हेथे छ भने मा२ रे छ ? (उदाहु) अथवा (न जा. गति न पासंति, आहारे ति) नथी angता नथी हेमता भने मा २ रे छ ? (गोयमा! नेरड्या णिज्जरा पोग्गले न जाणंति, न पासंति, आहारेति) हे गौतम! ना२४ नि पु श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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