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प्रमेयबोधिनी टोका पद १५ सू० ५ इन्द्रियाणां विषयपरिमाणनिरूपणम् ६३३ अगुलस्य संख्येयभागः, उत्कृष्टेन सातिरेकाद् योजनशतसहस्रात् अच्छिन्नान् पुद्गलान् अस्पृष्टान् अप्रविष्टानि रूपाणि पश्यति, घ्राणेन्द्रियस्य पृच्छा, गौतम ! जघन्ये नाङ्गुलस्यासंख्येयभागः, उत्कृष्टेन नवभ्यो योजनेभ्यः, अच्छिन्नान् पुद्गलान् स्पृष्टान् प्रविष्टान् गन्धान आजिघ्रति, एवं जिहवेन्द्रियस्यापि स्पर्शनेन्द्रियस्यापि ॥सू० ५॥
टीका-अथेन्द्रियाणां विषयपरिमाणं नवमं द्वारं प्ररूपयितुमाह-'सोइंदियस्स णं भंते ! हिंतो) उत्कृष्ट बारह योजनों से (अच्छिण्णे) छेद को नहीं प्राप्त (पोग्गले) पुद्गल (पुढे) स्पृष्ट (पविट्ठाई सद्दाइं सुणेइ) प्रविष्ट शब्दों को सुनता है।
(चक्खिदियस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ?) भगवन् ! चक्षुरिन्द्रिय का कितना विषय कहा गया है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागो) गौतम ! जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग (उकोसेणं साइरेगाओ जोयणसय. सहस्साओ) उत्कृष्ट किंचित् अधिक लाखयोजन से (अच्छिन्ने पोग्गले) अच्छिन्न पुद्गल (अपुढे) अस्पृष्ट (अपविट्ठाई रुवाई पासइ) अप्रविष्ट रूपों को देखती है।
(घाणिदियस्स पुच्छा ?) घाणेन्द्रिय के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भागो) हे गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग (उकोसेणं) उत्कृष्ट (णवहिं जोयणेहितो) नो योजनों से (अच्छिण्णे) अच्छिन्न (पोग्गले) पुद्गल (पुढे) प्रविष्ट (पविट्ठाई गंधाई अग्धाइ) प्रविष्ट गंधों को सूंघ ता है । (एवं जिभिदियस्स वि, फासिंदियस्स वि) इसी प्रकार जिहवेन्द्रिय का भी, स्पर्शनेन्द्रिय का भी।
टीकार्थ-अब इन्द्रियों का विषय परिमाण नामक नौवां द्वार प्रतिपादन (अच्छिण्णे) छेने नही पामेल (पोग्गले) पुस (पुढे) २५ष्ट (पविट्ठाई सद्दाई सुणेइ) प्रविष्ट શબ્દને સાંભળે છે
(चक्विंदियस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ?) 3 भगवन् ! यक्षु न्द्रियना सा विषय सा छ १ (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइ भागे) गौतम ! धन्य मनुसने। सध्यातमी ला (उक्कोसेणं साइरेगाओ जोयणसयसहस्साओ) Gre (यित् मधि elu योनी (अछिन्ने पोग्गले) छिन्न ५ (अपुढे) मष्ट (अपविद्वाई रूवाई पासइ) २५प्रविष्ट ३पोन नवे छ ।
(घाणिदियस्स पुच्छा ?) प्राणेन्द्रियना विषयमा छ। (गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइ भागो) 3 गौतम ! "धन्य शुलना मसभ्यातमी MIn (उक्कोसेणं) Srave (णवहिं जोयणेहिंतो) न१ योनाथी (अच्छिण्णे) मछिन्न (पोग्गले) पुस (पुढे) २Yष्ट (पविट्ठाई गंधाई अग्धाइ) प्रविष्ट धान सुधछे (एवं जिभिदियस्स वि, फासिंदियस्स वि) એ પ્રકારે જિન્દ્રિયના પણ, સ્પર્શનેન્દ્રિયના પણ
ટીકાર્થ-હવે ઇન્દ્રિયના વિષય પરિમાણ નામક નવમાદ્વારનું પ્રતિપાદન કરાય છેप्र०८०
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર: ૩