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________________ प्रमेोधिनी टीका पद १५ सू० ३ नैरयिकादीन्द्रियनिरूपणम् ६११ योरवगाहनार्थतया प्रदेशार्थतया अवगाहन प्रदेशार्थतया कतराणि कतरेभ्योऽल्पानि वा, बहुकानि वा, तुल्यानि वा, विशेषाधिकानि वा ? गौतम ! सर्वस्तोकं द्वीन्द्रियाणां जिवेन्द्रअवगाहनार्थतया स्पर्शनेन्द्रियमवगाहनार्थतया संख्येयगुणम्, प्रदेशार्थतया सर्वस्तोकं द्वीन्द्रियाणां जिहेन्द्रियम्, प्रदेशार्थतया स्पर्शनेन्द्रियं संख्येयगुणम्, अवगाहन प्रदेशार्थतण सर्वस्तोकम्, द्वीन्द्रियस्य जिवेन्द्रियम्, अवगाहनार्थतया स्पर्शनेन्द्रियं संख्येयगुणम्, स्पर्शने संस्थान वाली है, यह विशेषता है । (एएसि णं भंते ! बेइंदियाणं) हे भगवन् ! इन दीन्द्रियों की (जिभिदिय फासिंदियाणं) जिहवेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की (ओगाहण्याए) अवगाहनार्थता से (पएसट्टयाए) प्रदेशार्थता से, (ओगाहण एसइयाए) अवगाहना और प्रदेशों से ( कयरे करेहिंतो ) कौन किससे ( अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिम्भिदिए ओगाहणडयाए) हे गौतम ! सब से कम दीन्द्रियों की जिहूवेन्द्रिय अवगाहनार्थता से है ( फासिं दिए गाergery संखेजगुणे) स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहनार्थता से संख्यातगुणा ( पसाए सन्वत्थोवे बेइंदियाणं जिभिदिए ) प्रदेशों की अपेक्षा से सब से कम द्वीन्द्रियों की जिवेन्द्रिय है (पएसट्टयाए फार्सिदिए संखेज्जगुणे) प्रदेशों की अपेक्षा स्पर्शनेन्द्रिय संख्यातगुणा है (ओगाहणपएसभ्याए सव्वत्थोवे बेइंदियस्स जिभिदिए ) अवगाहना- प्रदेशों की अपेक्षा सब से कम द्वीन्द्रिय की जिहूवेन्द्रिय है (ओगाहट्टयाए फासिंदिए संखेज्जगुणे) अवगाहना से स्पर्शनेन्द्रिय संख्यातगुणी है ( फासिंदियस ओगाहट्टयाएहिंतो ) स्पर्शनेन्द्रिय की अवगाहनार्यता से (एएसिणं भंते! बेइंदियाणं) हे भगवन् ! या मेहन्द्रियामां (जिविंभदियफा सिंदियाणं) भिड्वेन्द्रिय मने स्पर्शनेन्द्रियमां (ओगाहणट्टयाए) अवगाहनार्थ ताथी ( प एसटुयाए ) प्रदेशार्थ ताथी (ओगाहणपएस ट्टयाए) अवगाहना भने प्रदेशोथी ( कयरे कमरेहिंतो) अणु नाथी ( अप्पा वा बहुया वो तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) मध्य, धणा तुझ्य अथवा विशेषाधि छे ? (गोमा ! सव्वत्थवे बेइंदियाण जिब्भिंदिए ओगाहणट्टयाए ) हे गौतम! मधाथी योछा द्वीन्द्रियोनी भिड़वेन्द्रिय अवगाडनार्थ ताथी छे (फार्सिदिए ओगाहणट्टयाए संखेज्जगुणे) स्पर्शने - न्द्रिय अवगाहुनार्थ ताथी संख्यातगी छे (पएस याए सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिब्भिंदिए) अहेश!नी अपेक्षामे मधाथी सोछी द्वीन्द्रियोनी भिडूवेन्द्रिय छे (पएसटुयाए फार्सिदिए संखेज्जगुणा) अहेशानी अपेक्षाओं स्यर्शनेन्द्रिय संख्यातगाणी छे. (ओगाहणपएसटुयाए सब्बत्थोवे इंदियरस जिमिंदिए ) अवगाहना भने प्रदेशोनी अपेक्षाये मधाथी ओछी द्वीन्द्रियोनी निड्वेन्द्रिय छे. (ओगाहणट्ट्याए फार्सिदिए संखेज्जगुणे) अवगाहनाथी स्पर्शनेन्द्रिय सध्यात गए छे (फासिंदियस्स ओगाहणट्टयाएहिंतो ) स्पर्शनेन्द्रियनी अवगाहनाथी (जिब्र्भिदिए पएस - શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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