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________________ ३८ प्रज्ञापनासूत्रे संज्ञोपयुक्ताः संख्येयमुणाः, मैथुनसंज्ञोपयुक्ताः संख्येयगुणाः, देवाः खलु भदन्त ! किम् आहारसंज्ञोपयुक्ताः, यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्ताः ? गौतम ! उत्सन्नं कारणं प्रतीत्य परिग्रहसंज्ञोपयुक्ता संततिभावं प्रतीत्य आहारसंज्ञोपयुक्ता अपि यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्ता अपि, एतेषां खलु भदन्त ! देवानाम् आहारसंज्ञोपयुक्तानाम् यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्तानाञ्च कतरे में उपयोग वाले होते हैं (आहारसन्नोव उत्ता संखिज्जगुणा) आहारसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा हैं (परिग्गहसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा) परिग्रहसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा हैं (मेहुणसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा) मैथुनसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा है । (देवाणं भते ! किं) हे भगवन् ! क्या देव (आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसन्नो उत्ता ?) आहारसंज्ञा में उपयोग वाले होते हैं अथवा परिग्रहसंज्ञा में उपयोग वाले होते हैं ? (गोधमा ! ओसन्नं कारणं पडुच्च) हे गौतम ! बहुलता से बाह्य कारण की अपेक्षा (परिग्गहसन्नोव उत्ता) परिग्रहसंज्ञा में उपयोग वाले होते हैं । (संततिभावं पडुच्च) आन्तरिक अनुभव की अपेक्षा से (आहारसनो - उता वि जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता वि) आहार संज्ञा में उपयुक्त अथवा परिग्रहसंज्ञा में भी उपयुक्त होते हैं । (एएसि णं भते ! देवाणं आहारसन्नोवउत्ताणं जाव परिग्गहसन्नोव उत्तान य) हे भगवन् ! इन आहारसंज्ञा में उपयोग वाले अथवा परिग्रहसंज्ञा में उपयोग वाले देवों में से (कयरे कयरेहिंतो) कौन किस से (अप्पा वा, बहुया वा, ( गोयमा !) हे गौतम! (सव्वत्थोवा मणूसा) अधार्थी ओछा मनुष्य (भयसन्नोवउत्ता) लय संज्ञामां उपयोगवाणा होय छे (आहारसन्नो उत्ता संखिज्ज गुणा) आहार संज्ञाभां उपयोगवाजा संख्यात गाया छे (परिग्गहसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा ) परिश्रड संज्ञाभां उपयोगवाणा संख्यात गा छे (मेहुणसन्नो उत्ता संखिज्जगुणा ) मैथुन संज्ञामां उपयोगવાળા સખ્યાત ગણા છે (देवाणं भंते! किं !) हे भगवन् ! शुं हेव (आहारसन्नोव ता जाव परिग्गहसन्नोवत्ता ?) आहार संज्ञामां उपयोगवाजा थाय छे यावत् परिग्रह संज्ञभां उपयोग वाजा थाप छे ? (गोयमा ! ओसन्नं कारणं पडुच्च) हे गौतम! मडुताथी माह्यारशुनीअपेक्षाओ (परिग्गहसन्नोव उत्तावि) परिश्रडु संज्ञाभां उपयोगवाजा थाय छे (संततिभावं पडुच्च) यान्तरि अनुलवनी अपेक्षा मे (आहारसन्नो उत्ता वि जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता वि) महार સંજ્ઞામાં ઉપયુક્ત યાવત્ પરિગ્રહ સંજ્ઞામાં પણ ઉપયુક્ત થાય છે (एएसिणं भंते! देवाणं आहारसन्नोवउत्ताणं जाव परिग्राहसन्नोवउत्ताण य) डे भगवन् ! આ આહાર સજ્ઞામાં ઉપયેગવાળા યાવત્ પરિગ્રહ સજ્ઞામાં ઉપયેગ વાળા દેવામાંથી ( कयरे कयरेहिंतो ) आयु अनाथी ( अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) हय, श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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