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________________ प्रमेवबोधिनी टीका पद १२ सू० ३ नारकादिसम्बध्यौदारिकादिशरीरनिरूपणम् ४४७ छाया-नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानिच मुक्तानिच, तत्र खल यानि तावद् बद्धानि तानि खलु न सन्ति, तत्र खलु यानि तावद् मुक्तानि, तानि खलु अनन्तानि यथा औदारिकमुक्तानि तथा भणितव्यानि, नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्ति वैक्रियशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च, मुक्तानि च, तत्र खलु यानि तावद् बद्धानि तानि खलु असख्येयानि, असंख्येयाभि रुत्सपिण्यवसर्पिणीभिः अपह्रियन्ते कालतः, क्षेत्रतः असंख्येयाः श्रेणयः प्रतरस्यासंख्येयभागः, तासां खलु श्रेणीनां विष्कम्भसूची अगुलिप्रथमवर्गमूलम्, नारकादि संबंधी शरीर शब्दार्थ-(नेरइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! नारकों के औदारिकशरीर कितने कहे हैं ? (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य) वे इस प्रकार-बद्ध और मुक्त (तत्थ णं जे ते बद्धल्लगा ते णं णत्थि) उनमें जो षद्ध हैं, वे नहीं होते (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा, ते णं अणंता) उनमें जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं (जहा ओरालियमुक्केल्लया तहाभाणियव्या) जैसे औदारिक मुक्त कहे हैं वैसे कहना चाहिए ___ (नेरइयाणं भंते ! केयइया येउब्धियसरीरया पण्णता?) हे भगवन् ! नारकों के चैक्रिय शरीर कितने कहे हैं ? (गोयमा! विहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य) बद्ध और मुक्त (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा) उनमें जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं (असं. खेजाहिं उत्सप्पिणि-ओसप्पिणिहिं अवहीरंति कालओ) वे काल से असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपहृत होते हैं (खेत्तओ असंखेजाओ सेढीओ) નારકાદિ સંબંધી શરીર शहाथ-(नेरइयाणं भंते ! केबइया ओरालियसरीरा पणत्ता ?) ३ लावन् ! ना२छीना मो२४ शरी२ eai zii छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) : गौतम ! में प्री२॥ ॥ छ (तं जहां-बल्लगा य मुक्केल्लगा य) तेथे ॥ ४॥३- मने भुत (तत्थणं जे ते बद्धेल्लया ते णं णत्थि) तमामा मद्ध छे. तेथे। नथी डाता (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा, ते णं अणंता) तेयामा २ भुत छ, तेयअनन्त छ (जहा ओरालियमुक्के ल्लया तहा भाणियव्वा) ॥ मोहा२ि४ भुत नये. (नेरइयाणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरया पण्णत्ता ?) 8 मान्! नाडीना वैठिय शश२ टसा घi छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) 3 गौतम ! मे २0 छ (तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य) मई मन थुत (तत्थ णं जे ते यद्धेल्लगा ते णं असं. खेज्जा) तमामा मद्ध छ त। अध्यात छ (असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणिहिं अवहीरंति कालओ) या थी असण्यात उत्सपिणी-मपस गामा अपहत श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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