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________________ ४०८ __ प्रज्ञापनासूत्रे दन्यद् विचिन्त्य विप्रलम्भबुद्धयाऽन्यद् वक्तुमिच्छुरपि सहसा यदेव मनसि चिन्तितमासीत् तदेव ब्रवीति इत्यर्थः, ८-'उवणीयवयणे' उपनीतवचनम्-प्रशंसात्मकवचनम् इत्यर्थः यथा इयं कन्या परमसुन्दरी वर्तते इति, ९ 'अवणीयवयणे' अपनीतववनम्-निन्दात्मकवचनम् यथा इयं बाला कुरूपा वर्तते इति, १० 'उवणीयावणीयवयणे' उपनीतापनीतवचनम्-प्रशंसानन्तरं निन्दावचनम्-यथा परमसुन्दरीयं स्त्री किन्तु दुःशीला वर्तते इति, ११ 'अवणीयो. वणी यवयणे' अपनीतोपनीतवचनम्-निन्दानन्तरं प्रशंसात्मकवचनम् यथा-कुरूपेयं कन्या किन्तु सुशीला वर्तते इति, १२ 'तोतवयणे' अतीतवचनम् -भूतकालिकवचनम् यथा अकापीत्' १३ इति, 'पडुप्पण्णवयणे' प्रत्युत्पन्नवचनम्-वर्तमानकालिकवचनम् यथा पचति इति, १४ 'अणागयवयणे' अनागतवचनम्-भविष्यत्कालिकवचनम् यथा गमिष्यति, इत्यादि, (७) अध्यात्म वचन-मन में कुछ और सोचकर ठगने की बुद्धि से कुछ और कहना चाहे, मगर अचानक वही मुख से निकल पडे जो सोचा हो। (८) उपनीतवचन-प्रशंसात्मक वचन, जैसे 'यह कन्या अत्यन्त सुन्दरी है। (९) अपनीत वचन-निन्दायाची वचन, जैसे यह लड़की बडी कुरूपा है । (१०)उपनीतापनीत वचन-पहले प्रशंसा करके फिर निन्दा करने वाला चचन, जैसे-यह सुन्दरी है, मगर दुश्शीला है । (११) अपनीतोपनीत वचन-निन्दा के पश्चातू प्रशंसा करने वाला वचन, जैसे-यह कन्या यद्यपि कुरूपा है, मगर है सुशीला । (१२) अतीतवचन-भूतकाल का द्योतक वचन, जैसे-अकार्षीत (किया)। (१३) प्रत्युत्पन्न वचन-वर्तमानवाची वचन, जैसे 'पचति' अर्थातू पकाता है। (१४) अनागत वचन-भविष्यत् काल का वाचक वचन, जैसे-'गमिष्यति' अर्थात् जाएगा। (૭) અધ્યાત્મ વચન-મનમાં કાંઈ બીજું જ વિચારીને ઠગવાની બુદ્ધિથી કાંઈક બીજું જ કહેવા ઈચ છે, પણ અચાનક તે મેઢામાંથી નિકળી જાય કે જે મનમાં વિચાર્યું હોય. (८) अपनीतपयन-प्रश'साम पयन. म '1 अन्य। अत्यन्त सुंदर छ' (6) ५५नात क्यन-नन्हीम क्यन. भ 24। उन्या ५४४३५. छे.' (૧૦) ઉ૫નીતાપનીત વચનપહેલા પ્રશંસા કરીને પછી નિન્દા કરવાવાળું વચન, २म 'म सुरी छ ५ :शी छे.' (૧૧) અપનીનીત વચન-નિન્દા પછી પ્રશંસા કરનારૂં વચન જેમ-“આ કન્યા યદ્યપિ કુરૂપ છે, પણ છે સુશીલા” (१२) मतीत ययन-भूत सधोत: ययन 'अकार्षीत' (यु) (१३) प्रत्युत्पन्न वयन-पतमान पाय वयन गेम ‘पचति' अर्थात् राधे छे. (१४) मनात यन-विष्याणानुपाय: पयन, रेभ गमिष्यति' अर्थात शे, श्री प्रशान॥ सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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