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________________ ३५२ प्रज्ञापनासूत्रे दुसमठियाई गिors जात्र असंखिज्जसमयठिड्याई गेहइ ?' हे भदन्त ! यानि द्रव्याणि कालतः - कालापेक्षया भाषात्वेन परिणमयितुं गृह्णाति तानि किम् एकसमयस्थितिकानिएक समये एवं स्थितिर्येषां तानि गृह्णाति ? किंवा द्वि समयस्थितिकानि गृह्णाति ? यावत् किं वा त्रिचतुः पञ्च षट् सप्ताष्ट नव दश समयस्थितिकानि द्रव्याणि भावात्वेन परिणमयितुं गृह्णाति ? किंवा संख्येयसमयस्थितिकानि द्रव्याणि भाषात्वेन परिणमयितुं गृह्णाति ? किं बा असंख्येयसमयस्थितिकानि द्रव्याणि भाषात्वेन परिणमयितुं गृह्णाति ? भगवानाह - 'गोमा !' हे गौतम ! ' एगसमयठियाई पि गेव्हइ दुसमयठियाई पि गेव्हर जाव असंखेज्जसमयठियाई पि गेहइ' कालतः एकसमयस्थितिकान्यपि द्रव्याणि गृहाति, द्वि समयस्थितिकान्यपि द्रव्याणि भाषात्वेन परिणमयितुं गृह्णाति यावत् - त्रिचतुः पञ्च षट् सप्ताष्ट नव दश समयस्थितिकान्यपि द्रव्याणि गृह्णाति संख्येयसमय स्थितिकान्यपि द्रव्याणि गृह्णाति, असंख्येय समयस्थितिकान्यपि द्रव्याणि भाषात्वेन परिणमयितुं गृहाति, पुद्गलानामसंख्येयकालपर्यन्तमपि अवस्थान संभवात्, तथा चोक्तम्- 'अनंतपएसिए णं भंते ! खंधे के काल सेए ? गोयमा ! जहणेणं एवकं समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं, निरेए है, वे क्या एक समय की स्थिति वाले होते हैं ? या क्या दो समय की स्थिति वालों को ग्रहण करता है ? यावत् क्या असंख्यात समय की स्थिति वालों को ग्रहण करता है ? भगवान् हे गौतम! काल से एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ, दश समय की स्थिति वालों को भी ग्रहण करता है, संख्यात समय की स्थिति वालों को भी और असंख्यात समय की स्थिति वालों को भी ग्रहण करता है। पुद्गलों की अवस्थिति असंख्यात काल पर्यन्त भी संभव है। कहा भी है- 'भगवन् ! अनन्त प्रदेशी स्कंध कितने काल तक हलन चलन से युक्त रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय तक उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक रहता है और हलन चलन से શું એક સમયની સ્થિતિવાળા હાય છે ? અગર શું એ સમયની સ્થિતિવાળાને ગ્રહણુ કરે છે ? યાવત્ શું અસંખ્યાત સમયની સ્થિતિવાળાને ગ્રહણ કરે છે? શ્રી ભગવાન્—હે ગૌતમ! કાળથી એક સમયની સ્થિતિવાળા દ્રબ્યાને ગ્રહણ કરે છે. ये सभयनी स्थितिवाजा द्रव्योने पर यह रे छे, यावत् त्र, यार, पांच, छ, सात, આઠ, નવ, દશ સમયની સ્થિતિવાળાએને પણ ગ્રહણ કરે છે. સંખ્યાત સમયની સ્થિતિ વાળાઓને પણ ગ્રહણ કરે છે, અને અસંખ્યાત સમયની સ્થિતિવાળાએને પણ ગ્રહણ કરે છે, પુદ્ગલેાની અવસ્થિતિ અસંખ્યાતકાળ પર્યંન્ત પણ સ ંભવિત છે. કહ્યું પણ છે‘ભગવન્ ! અનન્ત પ્રદેશી સન્ય કેટલા સમય સુધી હલન ચલનથી યુક્ત રહે છે? ગૌતમ! જઘન્ય એક સમય સુધી ઉત્કૃષ્ટ આવલિકાના અસંખ્યાતમા ભાગ સુધી રહે છે श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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