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________________ प्रबोधिनी टीका पद ११ सू. ७ भाषाजातनिरूपणम् ३२९ भाषा भाषन्ते, सत्यामृषामपि भाषां भाषन्ते, असत्यामृपामपि भाषां भाषन्ते, नैरयिका: खलु भदन्त ! कि सत्यां भाषां भाषन्ते यावद् असत्यामृषां भाषां भाषन्ते ? गौतम ! नैरयिकाः खलु सत्यामपि भाषा भाषन्ते यावद् असत्यामृषामपि भाषां भाषन्ते, एवम् असुरकुमारा यावत् - स्तनितकुमाराः, द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियाश्च नो सत्यां नो मृषां नो सत्यामृषां भाषां भाषन्ते, असत्यामृषां भाषां भाषन्ते, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः खलु भदन्त ! किं सत्या भाषां भाषन्ते यावत् किम् असत्यामृषां भाषां भाषन्ते ? गौतम ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः गौतम ! जीव सत्य भाषा भी बोलते हैं (मोसंपि भासं भासंति) मृषाभाषा भी वोलते हैं (सच्चामो संपि भासं भाति) सत्यामृषा भी भाषा बोलते हैं (असच्चामोसंपि भासं भासंति) असत्यामृषा भी भाषा बोलते हैं । (नेरइया णं भंते किं सच्चं भासं भासंति ?) हे भगवन् नारक क्या सत्य भाषा बोलते हैं ? (जाव असच्चामोसंपि भासं भासंति) यावत् असत्यामृषा भाषा भी बोलते हैं (एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा) इसी प्रकार असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार (बेदिय - तेइंदिय-चडरिंदिया य नो सच्चे, नो मोर्स, नो सच्चामोसं भासं भासंति) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय सत्य भाषा नहीं बोलते, मृषा भाषा नहीं बोलते, सत्यमृषा भाषा नहीं बोलते (असच्चामोसं भासं भासंति) असत्यामृषा भाषा बोलते हैं । (पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! किं सच्चं भासं भासंति ?) हे भगवन् ! तिर्यच पंचेन्द्रिय क्या सत्य भाषा बोलते हैं ? (जाव किं असच्चामोसं भासं भासंति ?) यावत् क्या असत्यामृषा भाषा बोलते हैं ? (गोयमा ! पंचिदियतिरिक्खजोणिया णो सच्चं भासं भासंति) हे गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यच सत्यभाषा पि भासं भासति) हे गौतम! व सत्य भाषा पशु से (मोसं वि भासं भासंति) भूषा छे (सच्चा मोसं पि भासं भासति) सत्या भूषा भाषा पशु माझे छे (असच्चा मोक्षं पि भासं भासंति) असत्या भृषा भाषा या मोटो छे. ( नेइयाणं भंते! किं सच्चं भासं भासंति) हे भगवन् नार। शु सत्य भाषा मोझे छे ? ( जाव अच्चामोस पि भासं भासंति) यावत् असत्या भूषा भाषा मोडे हे ( एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा ) मे प्रमाणे असुरकुमारथी सर्धने यावत् स्तनितभार पर्यंत समन् (बेदिय इंथिय चरि दिया य नो सच्च, नो मोसं, नो सच्चामोसं भासं भासंति) द्वीन्द्रिय, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિ દ્રિય સત્ય ભાષા ખેલતા નથી, મૃષા ભાષા ખેલતા નથી, સત્યામૃષા પણ मोसता नथी. (असच्चा मोसं भासं भासंति) असत्या भूषा भाषा मोसे छे. (पंचि ंदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते! किं सच्च भासं भासंति) हे भगवन् ! तिर्यथ पथेन्द्रिय शुं सत्य भाषा मोटो छे ? (जाव किं असच्चामोस भासं भासं ति यावत् शुं असत्या प्र० ४२ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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