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प्रज्ञापनासूत्रे
वर्णसंभवे सत्यपि बलाकाः शुक्ला इत्युच्यो, तथा 'जोगसच्चा९' योगसत्या भाषा भवति, तत्र योगः सम्बन्ध स्तस्मात् सत्या-योगसत्या, यथा छत्रयोगाद् विवक्षित-शब्दव्यवहारकाले छत्राभावेऽपि छत्रयोगस्प संभवात् छत्रीति प्रयुज्यते, एवं दण्डयोगाद् दण्डीति प्रयुज्यते, तथा-'ओवम्म सच्चा १०' औपम्य सत्या भाषा भवति, यथा 'गोसदृशो गवयः' इत्यादौ गवये गोसादृश्यरूपौपम्यात् सत्या भाषा भवति, अथ शिष्यजनानुग्रहाय संग्रहणीं गाथा माह
'जणवय१ संमत२ ठवण३ नामे४ रूवे५ पडुच्च सच्चे६ य । ववहार७ भाव८ जीगे९ दसमे ओवम्म सच्चे य १०' ।। जनपदः संमतं, स्थापना, नाम, रूपम् , प्रतीत्य सत्या च ।
व्यवहार भाव योगो दशमी औपम्य सत्या च भाषा भवति । सत्य भाषा कहलाती है । जो भाव जिस पदार्थ में अधिकता से पाया जाता है, उसी के आधार पर भाषा का प्रयोग देखा जाता है। ऐसी भाषा भावसत्य कहलाती है, जैसे पांचों वर्ण होने पर भी बलाका (बगुलों की पंक्ति) को श्वेत कहना।
(९) योगसत्या-योग का अर्थ है सम्बन्ध । उससे जो भाषा सत्य हो वह योगसत्य भाषा कहलाती है । जैसे छत्र के योग से किसी को छत्री कहना, भले ही किसी समय छत्र का योग उसमें न पाया जाय । इसी प्रकार किसी को दंड के योग से दंडी कहना।
(१०) औपम्यसत्य-जो भाषा उपमा से सत्य मानी जाय । जैसे-गवय (रोझ) गौ के समान होता है । इस प्रकार की उपमा पर आश्रित भाषा औपम्यसत्य कहलाती है। ___ अब शिष्य जनों के अनुग्रह के लिए संग्रहणी गाथा कहते हैं-(१) जनपदसत्य (२) सम्मतसत्य (३) स्थापन सत्य (४) नामसत्य (५) रूपसत्य (६) प्रतीભાષા કહેવાય છે. જે ભાવ જે પદાર્થમાં અધિક્તા મેળવે છે, તેના આધાર પર પરભાષાને પ્રયોગ જણાય છે. એવી ભાષા ભાવ સત્ય કહેવાય છે જેમ પાંચે રંગહોવા છતાં બલાકા (બંગલાની પંક્તિ) ને વેત કહેવા
(6) योगसत्य-याने। मथ छे सम्मन्य. तेनाथी रे भाषा सत्य य त योगસત્યભાષા કહેવાય છે. જેમ-છત્રના વેગથી કોઈને “છત્રી કહે, ભલે કઈ વખતે છત્રને વેગ તેમાં ન હોય. એજ રીતે કે ઈને દંડના મેગથી “ડી” કહે.
(१०) मो५भ्यसत्य-१ भाषा माथी सत्य भनाय रेभडे-गय() सायना समान હોય છે. આ પ્રકારની ઉપમા પર આશ્રિત ભાષા ઔપમ્પસત્ય કહેવાય છે.
હવે શિષ્યજનના અનુગ્રહમાટે સંગ્રહણી ગાથા કહે છે
(१) ५४सत्य (२) सम्मतसत्य (3) स्थापनासत्य (४) नामसत्य (५) ३५सत्य (९) प्रतीत्यसत्य (७) ०५४०२सत्य (८) मापसत्य (6) सत्य (१०) मने मो५भ्यसत्य
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩