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________________ २९६ प्रज्ञापनासूत्रे प्रज्ञप्ता ? गौतम ! दशविधा प्रज्ञमा तद्यथा-जनपदसत्या १ सम्मत सत्या२ स्थापना सत्या३ नाम सत्या४ रूपसत्या५ प्रतीत्य सत्या६ व्यवहार सत्या७ भावसत्या ८ योगसत्या ९ औपम्यसत्या १० जनपदम् १ संमतम् २ स्थापना ३ नाम ४ रूपम् ५ प्रतीत्य सत्यम् ६ च । व्यवहारः ७ भावः ९ योगो दशमम् औपम्यसत्यश्च १० १॥ मृषा खलु भदन्त ! भाषा पर्याप्ता कतिविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! दशविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-क्रोधनिःसृताः१ माननिःसृता २ मायानिःसृता ३ लोभनिःसृता ४ प्रेमनिःसृता ५ द्वेषनिमृता ६ हास्यनिःसृता ७ भयनिःमोसा य) सत्य और मृषा (सच्चा णं भंते ! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! सत्य पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दस प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (जणवय सच्चा) जनपद सत्य (सम्मय सच्चा) सम्मत सत्य (ठवण सच्चा) स्थापना सत्य (णाम सच्चा) नाम सत्य (रूव सच्चा) रूपसत्य (पडुच्च सच्चा) प्रतीत्य-आपेक्षिक सत्य (ववहार सच्चा) व्यवहार सत्य (भाव. सच्चा) भाव सत्य (जोग सच्चा) योग सत्य (ओवम्म सच्चा) उपमा सत्य । (जणवय-संमत-ठवणा) जनपद सत्य, सम्मत सत्य, स्थापना सत्य (नामे रूवे पडुच्च सच्चे य) नामसत्य, रूपसत्य, और प्रतीत्यसत्य (ववहार-भावजोगे) व्यवहार सत्य, भावसत्य, योगसत्य (दसमे ओवम्म सच्चे य) और दशमा औपम्यसत्य ॥१॥ ___ (मोसा णं भंते ! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! मृषा पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दस प्रकार की कही है (त जहा) वह इस प्रकार (कोहणिस्सिया) क्रोध य) सत्य भने भृषा (सच्चाणं भंते ! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?) , मापन् ! सत्य पर्यात भाषा 3280 २नी ही छ ? (गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता) गौतम ! ४२ ५।२नी छ (तं जहा) ते ॥ प्रारे (ज़णवयसच्चा) - ५६ सत्य (सम्मयसच्चा) सभत सत्य (ठवण सच्चा) स्थापना सत्य (नाम सच्चा) नाम सत्य (रूव सच्चा) २५ सत्य (पडुच्च सच्चा) प्रतीत्य-मपेक्षित सत्य (ववहार सच्चा) व्यवहार सत्य (भाव सच्चा) मा सत्य (जोग सच्चा) यो सत्य (ओवम्म सच्चा) ७५मा सत्य (जणवय संमतठवणा) 1५४ सत्य, सम्भत सत्य, स्थापना सत्य (नामे रूवे पडुच्च सच्चेय) नाम सत्य, ३५ सत्य मन प्रतीत्य सत्य (ववहार-भाव-जोगे) व्यवहार सत्य, मावसत्य योगसत्य (दसमे ओवम्म सच्चेय) मन शमा यो ५भ्य सत्य ॥ १ ॥ (मोसाणं भंते ! भासा पज्जत्तिया कति विहा पण्णत्ता ?) भगवन् ! भृषापयामि। भाषा ८९४२नी ४ी छ ? (गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता) 3 गौतम ! ४॥ ५४२नी sी छ (तं जहा) ते मा प्रकारे (कोणिस्सिया) यी निseी (माणणिरिसया) भानथी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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