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प्रज्ञापनासूत्रे
स्त्रीवाकू - स्त्रीलिङ्गाभिधायिनी शाला माला लतेत्यादि स्वरूपा भाषा, या च पुरुषवाक्- घटः पट इत्यादि स्वरूपा भाषा, या च नपुंसकवाकू धनं वनमित्यादि स्वरूपा भाषा किं प्रज्ञापनीयं भाषा भवति ? नैषा भाषा मृषेति तथा च शाला घट धनादयः शब्दा यथाक्रमं स्त्रीपुंनपुंसकलिङ्गाभिधायका वर्तन्ते किन्तु 'स्तन केशवतीनारी लोमशः पुरुषः स्मृतः । उभयोरन्तरं यच्च तदभावे नपुंसकम् ॥ इत्यादिलौकिकलिङ्गलक्षणाभावात् कथमियं प्रज्ञापनी भाषा समभवतीति प्रश्नः, भगवानाह - 'हंता, गोयमा !' हे गौतम ! हन्त - सत्यमेतत्,
गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं- भगवन् ! यह जो स्त्रीवाचक भाषा है, जैसे शाला, माला, लता आदि जो पुरुष वाचक भाषा है, जैसे घट पट आदि, और यह जो नपुंसकवाचक भाषा है, जैसे धनम्, वनम् आदि, यह भाषा क्या प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा नहीं है ? तात्पर्य यर है कि शाला आदि शब्द स्त्रीलिंग कहे जाते है, घट आदि शब्द पुलिंग कहे जाते हैं, धन आदिशब्द नपुंसक कहलाते हैं, किन्तु इन शब्दों में न तो स्त्रीलिंग पाया जाता है, न पुलिंग और नपुंसकलिंग ही देखा जाता है। जैसे कहा है- 'जिसके बडे-बडे स्तन और केश हो, उसे स्त्री समझना चाहिए जिसके सभी अंगों में रोम हों उसे पुरुष कहते हैं। जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के लक्षण घटित न हों, उसे नपुंसक जानना चाहिए ॥'
तात्पर्य यह है कि शाला, माला आदि शब्दों में स्त्री के उक्त लक्षण नहीं होते । घट, पट आदि शब्दों में पुरुष का लक्षण नहीं पाया जाता । धन आदि नपुंसकलिंगी कहलाने वाले शब्दों में नपुंसक का लक्षण नहीं होता । ऐसी स्थिति में किसी शब्द को स्त्रीलिंग, किसी को पुलिंग और किसी को नपुंसक लिंग कहना क्या वास्तव में सत्य है ? ऐसा कहना क्या मिथ्या नहीं है ?
શ્રી ગૌતમસ્વામી પુનઃ પ્રશ્ન કરે છે હે ભગવન્ ! આ જે સ્ત્રી વાચક ભાષા છે, नेम शाला, माला, लता आदि ने पुइषवाय भाषा छे, नेम घटः पटः आहि भने આજે નપુંસક વાચક भाषा, भर्डे धनम्, वनम् याहि मे भाषा शु- प्रज्ञापनी छे એ ભાષા મૃષા નથી ? તાત્પર્ય એ છે કે શાલા આદિ શબ્દ સ્ત્રીલિંગ કહેવાય છે ઘટ આફ્રિ शब्द युसिंग हेवाय छे, धनं आदि शब्द नपुंस४ डेवाय है, पशु मा शोभां नथी स्त्रीलिंग નથી પુલિંગ અને નથી નપુંસકલિંગ જોવામા આવતુ જેમ કહ્યું છે—જેના માટા મોટા સ્તન અને ફ્રેશ હાય તેને સ્ત્રી સમજવી જોઈએ જેના બધા અંગામા રામ હાય તેને પુરૂષ કહે છે. જેમાં સ્ત્રી અને પુરૂષ બન્નેના લક્ષણ ઘટતા હેય, તેને નપુ ́સક જાણવા જોઈએ. તાત્પ એ છે કે શાલા માલા આદિ શબ્દમાં સ્ત્રીના ઉક્ત લક્ષણ નથી હાતાં ઘટ, પટ આદિ શબ્દોમાં પુરૂષના લક્ષણ નથી મળતાં ધન આદિ નપુંસક કહેવરાવનારા શબ્દોમાં નપુસકના લક્ષણ નથી હતાં. એવી સ્થિતિમાં કાઈ શબ્દને સ્રીલિંગ કાઈને પુલિંગ અને કોઈ ને નપુંસકલિ’ગ કહેવું તે વાસ્તવમાં સત્ય છે ? એવું કહેવુ શું મિથ્યા નથી ?
श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3