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________________ १८४ प्रज्ञापनासूत्रे र्थतया एकम् अचरम, चरमाणि संख्येयगुणानि, अचरमञ्च चरमाणि च द्वयान्यपि विशेषाधिकानि, प्रदेशार्थतया सर्वस्तोकाः परिमण्डलस्य संस्थानस्य असंख्येयप्रदेशिकस्य संख्येयप्रदेशावगाढस्य चरमान्तप्रदेशाः, अचरमान्तप्रदेशाः संख्येयगुणाः, चरमान्तप्रदेशाश्च अचरमान्तप्रदे. शाश्च द्वयेऽपि विशेषाधिकाः, द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया सर्वस्तोकं परिमण्डलस्य संस्थानस्य असंख्येय. प्रदेशिकस्य संख्येयप्रदेशावगाढस्य द्रव्यार्थतया एकम् अचरमम, चरमाणि संख्येयगुणामि, अचरमञ्च चरमाणि च द्वयान्यपि विशेषाधिकानि, चरमान्तप्रदेशाः संख्येयगुणाः, अचरमान्तप्रदेशाः संख्येयगुणाः चरमान्तप्रदेशाश्च अचरमान्तप्रदेशाश्च द्वयेऽपि विशेषाधिकाः एवं यावत् का द्रव्य से एक अचरम सबसे कम है (चरमाइं संखेज्जगुणाई) घरमाणि संख्यात गुणा हैं (अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियाई) अचरम और चरमाणि दोनों विशेषाधिक हैं (पएसट्टयाए सव्वत्थोवा परिमंडलसंठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स चरमंतपएसा) असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशों में अवगाढ परिमंडल संस्थान प्रदेशों की अपेक्षा सब से कम चरमान्तप्रदेश हैं (अचरमंतपएसा संखिज्जगुणा) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणा हैं (चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों विशेषाधिक हैं (दव्वट्ठपएसट्टयाए) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा (सव्वत्थोवे) सब से कम (परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखजपएसोगाढस्स) असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशों में अवगाढ परिमंडलसंस्थान का (दव्वट्ठयाए) द्रव्य से (एगे अचरिमे) एक अचरम है (चरमाइं संखेज्जगुणाई) चरमाणि संख्यातगुणा हैं (अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियाई) अच. रमं और चरमाणि दोनों विशेषाधिक हैं (चरमंतपएसा संखेजगुणा) चरमान्तप्रदेश संख्यातगुणा हैं (अचरमंतपएसा संखेज्जगुणा) अचरमान्तप्रदेश संख्यातयभार सयात छ (अचरमं च चरमाणिय दो वि विसेसाहियोइ) मय२ मने २२. भारि मन्न विशेषाधि४ छ (सव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्जपएसियस संखज्जपएसोगाढस्स चरमंतपएसा) असभ्यात अशी सभ्यात प्रशामा अगाद परिम यानना प्रशानी अपेक्षा अपाथी माछ। य२मान्त प्रदेश छे (अचरमंतपपसा संखिज्जगुणा) ५२२मान्त प्रदेश सध्यातमा छ (चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया) २२मान्त प्रदेश भने अन्यमान्त प्रदेश मन्न विशेषाधि४ छ (दव्वटुपए. सट्टयाए)द्रव्य भने प्रदेशानी अपेक्षा (सव्वत्थोवे) माथी छ। (परिमंडलस्स संठाणस्स असं खज्जपएसिएयस्स संखेज्जपएसोगाढस्स) असभ्यात प्रशी सज्यात प्रशामा सा परिभ3 संस्थानना (दबट्टयाए) द्रव्यथी (एगे अचरिमे) ४ सयरम छ (चरमाइं संखेज्ज गुणाइ) य२भा सभ्यात छ (अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियाइ) अन्य२म भने यसमा भन्ने विशेषाधि छ (चरमतपपसा संखेज्जगुणा) यभान्त प्रदेश શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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