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________________ १५६ प्रज्ञापनासूत्रे शिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणाष्टाविंश स्थापना रीत्या समश्रेण्या व्यवस्थितेषु त्रिषु आकाशप्रदेशेषु अवगाहते तत्र एकैकस्मिन् आकाशप्रदेशे द्वौ द्वौ परमाणु वर्तेते तदाऽऽद्यप्रदेशवर्तिनौ द्रौ परमाणू चरमः, द्वौ चान्त्यप्रदेशवर्तिनौ चरम इति चरमौ द्वौ तु मध्यप्रदेशवर्तिनों अचरम इति तत्समुदायात्मक षट्प्रदेशिकस्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमश्च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाई य अचरमाई य१०' षट्प्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् - कदाचित् चरमौ चाचरमौ च' इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा षट्प्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणैकोनत्रिंशस्थापनारीत्या समश्रेण्या व्यवस्थितेषु चतुर्षु आकाशप्रदेशेषु अवगाहते तत्राधे प्रदेशे द्वौ परमाणू द्वितीये प्रदेशे द्वौ परमाणू तृतीये प्रदेशे एकः परमाणुश्चतुर्थे च प्रदेशे एकस्तदाऽऽद्यप्रदेशवर्तिनौ द्वौ परमाणू चरमः, अन्त्यप्रदेशवर्ती चैकः परमाणुश्चरमः, इति चरमौ द्वौ च परमाणू द्वितीयप्रदेशवर्तिनों अचरमः, तृतीयप्रदेशवर्ति परमाणुश्चैको चरम इति अचरमावपि द्वौ संजातौ इति तत्समुदायात्मक षट्प्रदेशिकप्रदेशों में अवगाहन करता है, और एक-एक आकाशप्रदेश में दो-दो परमाणु रहते हैं, तब आध प्रदेश में रहे हुए दो परमाणु 'चरम' और अन्तिम प्रदेश में स्थित दो परमाणु भी 'चरम,' यों दोनों मिलकर 'चरमौ' कहलाए तथा मध्यवर्त्ती दो प्रदेश 'अचरम' कहलाए । समग्र स्कंध 'चरमौ - अचरम' कहलाया । षट्प्रदेशी स्कंध 'चरमौ - अचरमौ भी कथंचित् कहा जा सकता है। वह इस प्रकारजब कोई षट्प्रदेशी स्कंध आगे कही जानेवाली उनतीसवीं स्थापना के अनुसार समश्रेणी में अवस्थित चार आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है और उनमें से आद्यप्रदेश में दो परमाणु, द्वितीय प्रदेश में दो परमाणु, तीसरे प्रदेश में एक और चौथे प्रदेश में एक परमाणु होता है, तब आद्यप्रदेश में स्थित दो परमाणु चरम और अन्तिम प्रदेश में स्थित एक परमाणु भी चरम कहा जाता है । यों दो चरम 'चरमौ' हुए, दूसरे प्रदेश में स्थित दो परमाणु 'अचरम' हैं, तीसरे प्रदेश षट्रप्रदेशी २५न्ध 'चरम - अचरमौ' पशु अहेवाय छे क्यारे षट्प्रहेशी स्न्ध भागण કહેવામાં આવનાર અઠયાવીસમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણીમાં સ્થિત ત્રણ પ્રદેશમાં અવગાહન કરે છે, અને એક-એક આકાશ પ્રકશમાં છે એ પરમાણુ રહે છે, ત્યારે આદ્ય अहेशभां रडेला मे परमायु 'चरम' भने अन्तिम प्रदेशमा स्थित में परभालु 'चरम ' खेम भन्ने भजीने 'चरमौ' उडेवाया तथा मध्यवर्ती मे प्रदेश 'अचरम' २४६ 'चरमौ, अचरम' 'वाया. वाया, समर्थ षट्प्रदेशी ४न्ध 'चरमौ - अचरमौ । थथित हवाई शडे छे. ते मा अरेજ્યારે કાઈ ષટ્ઝદેશી સ્કન્ધ આગળ કહેવાશે તે એગણત્રીસમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણીમાં અવસ્થિત ચાર આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે, અને તેએમાંથી આદ્યપ્રદેશમાં એ પરમાણુ દ્વિતીય પ્રદેશમાં બે પરમાણુ ત્રીજા પ્રદેશમાં એક અને ચેાથા પ્રદેશમા એક પરમાણુ હોય છે. ત્યારે આદ્ય પ્રદેશમાં સ્થિત છે પરમાણુ ચરમ, અને અન્તિમ પ્રદેશમાં स्थित मे परभानु या सरभ हेवाय छे. सेभ भन्ने अरम 'चरमौ' थया. जील आहे. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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