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________________ प्रबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चस्माचरमत्वनिरूपणम् चतुर्णां परमाणूनामेकसम्बन्धिपरिणामपरिणतत्वात् एक वर्णगंधरसस्पर्शत्वाच्चैकत्वव्यपदेशः, एकत्वव्यपदेशाच्चचरम इति, मध्यवर्तिनौ द्वौ परमाणूत्वेकत्वपरिणामपरिणतत्वादचरम इति तदुभयात्मक पद्मदेशिक स्कन्धोऽपि 'चरमश्र अचरमथ' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमे य अचरमाई य ८' षट्प्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् - कदाचित् "चरमश्च अचरमौ च" इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा षट्प्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणसप्तत्रिंशस्थापना २७रीत्या षट्सुआकाश - प्रदेशेषु समश्रेण्या एकाधिकमवगाहते तदा पर्यन्तवर्तिनः समश्रेण्याऽवस्थिताश्चत्वारः परमाणवः प्रागुक्तयुक्त्या चरमः, मध्यवर्तिनौ द्वौ परमाणु अचरमौ इति तदुभयात्मक षट्प्रदेशिकः स्कन्धोऽपि 'चरमश्राचरमौ च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाई व अचरमे य ९' षट्प्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् - कदाचित् 'चरमौ चाचरमथ' इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा षट्प्रदेप्रदेशों में, तब वे चार परमाणु एक सम्बन्धी परिणमन में परिणत होने के कारण तथा एक वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श वाले होने से एक ही कहलाते हैं और इस कारण उनमें एकत्व का व्यवहार होने से 'चरम' है । मध्यवर्ती दो परमाणु एकत्व परिणाम - परिणत होने के कारण 'अचरम' है, इस प्रकार दोनों का समूहरूप षट्पदेशी स्कंध भी 'चरम - अचरम' कहलाता है । प्रदेशी स्कंध कथंचित् 'चरम - अचरमौ' कहलाता है, क्योंकि जब कोई प्रदेशी स्कंध आगे बतलाई जाने वाली सत्ताईसवीं स्थापना के अनुसार छह आकाशप्रदेशों में समश्रेणी से एकाधिक अवगाहन करता है तब समश्रेणी में स्थित चार परमाणु पहले कहे अनुसार 'चरम' और मध्यवर्त्ती दो परमाणु 'अच रम' कहलाते हैं। दोनों का समूह षट्टप्रदेशी स्कंध भी 'चरम - अचरमौ ' कहा जाता है। प्रदेशी स्कंध 'चरमौ - अचरम' भी कहलाता है । जब षटूप्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली अट्ठाईसवीं स्थापना के अनुसार समश्रेणी में स्थित तीन મધ્યમા હાય છે અને એક-એક શેષ પ્રદેશામાં હાય છે. ત્યારે તે ચાર પરમાણુ એક સમ્બન્ધી પરિણમનમાં પરિણત થવાને કારણે તથા એક વણુ, ગંધ, રસ તેમજ સ્પર્શીવાળા હવાથી એક જ કહેવાય છે અને એ કારણે તેએમાં એકલના વ્યવહાર હાવાથી 'चरम' छे. मध्यवर्ती परभालु मे४त्व परिणाम परिणत होवाने अर 'अचरम' छे. मेवी रीते मन्नेना समूह ३५ षट् अहेशी सुन्ध पशु 'चरम, अचरम' देवाय छे. षट्प्रद्वेशी २४०६ ४थयितु चरम - अचरमौ, हेवाय छे, उभडे न्यारे हो या षट् પ્રદેશી સન્ય આગળ બતાવાશે તે સત્યાવીસમી સ્થાપનાના અનુસાર છ આકાશ પ્રદેશમાં સમશ્રેણીથી એકાધિક અવગાહના કરે છે, ત્યારે સમશ્રેણીમાં સ્થિત ચાર પરમાણુ પહેલા ह्या अनुसार 'चरम' भने मध्यवर्ती मे परमाणु 'अचरमौ' हेवाय छे, अन्नेनो समूह षट्प्रहेशी ४न्ध पशु चरम - अचरमौ हेवा छे. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩ १५५
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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