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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चस्माचरमत्वनिरूपणम् १४९ एकः परमाणुर्विश्रेणिस्थे आकाशप्रदेशे वर्तते, द्वौ च परमाणू अन्यस्मिन विश्रेणिस्थे आकाश प्रदेशे वर्तते तदा द्वौ परमाणू समश्रेणि व्यवस्थित द्विप्रदेशावगाढौ द्विप्रदेशावगाढ द्विप्रदेशिकस्कन्धवच्चरमः, एको द्वौ च विश्रेणिस्थ पृथक्-पृथगेकैकाकाशप्रदेशावगाढौ चावक्तव्यौ भवतः-इति तत्समुदायात्मकः पश्चप्रदेशिकः स्कन्धोऽपि 'चरमश्वावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते, "सिय चरमाइं च अवत्तव्वए य १३' पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् , चरमौ चावक्तव्यश्च, इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा खलु पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणविंशस्थापनारीत्या पश्चस्तु आकाशप्रदेशेषु अवगाहते तत्र द्वौ परमाणू उपरि समश्रेण्या व्यवस्थितयोर्द्वयोराकाशप्रदेशयोरवगाढौ वर्तेते, द्वौ च परमाणू अधस्तात् समश्रेण्या व्यवस्थितयो योराकाशप्रदेशयोरवगाढौ क्र्तेते, एकश्च परमाणुः पर्यन्ते मध्यसमे वर्तते तदा द्वौ उपरितनौ स्थित आकाशप्रदेश में रहता है और दो परमाणु किसी दूसरे विश्रेणी में स्थित आकाशप्रदेश में रहते हैं, तब दो परमाणु, समश्रेणी में स्थित दिप्रदेशावगाढ होते हैं। वे द्विप्रदेशावगाढ द्विप्रदेशी स्कंध के समान 'चरम' कहलाते हैं । एक और दो, जो विश्रेणी में स्थित पृथक्-पृथक् एक-एक आकाशप्रदेश में अवगाढ होते हैं, वे 'अवक्तव्यो' कहलाते हैं । इस प्रकार समग्र स्कंध मिलकर 'चरम-अवक्तव्यौ कहा जाता है । पंचप्रदेशी स्कंध कथंचित् 'चरमौ-अवक्तव्य' भी कहा जाता है । वह इस प्रकार-जब पंचप्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली वीसवीं स्थापना के अनुसार पांच आकाशप्रदेशों में अवगाहन करता है, उनमें से दो परमाणु ऊपर समश्रेणी में स्थित दो आकाशप्रदेशों में अवगाढ होते हैं, दो परमाणु नीचे समश्रेणी में स्थित दो आकाशप्रदेशों में अवगाढ होते हैं और एक परमाणु अन्त में धीचोंबीच में स्थित होता है, तब दो ऊपर के परमाणु द्विप्रदेशावगाढ द्विप्रदेशी રહે છે, અને એક પરમાણુ કઈ વિશ્રેણીમાં સ્થિત આકાશ પ્રદેશોમાં રહે છે. અને બે પરમાણુ કેઈ બીજી વિશ્રેણીમાં સ્થિત આકાશ પ્રદેશમાં રહે છે, ત્યારે બે પરમાણુ, સમશ્રેણીમાં સ્થિત દ્ધિપ્રદેશાવગાઢ થાય છે. તે ઢિપ્રદેશાવગાઢ દ્ધિપ્રદેશી ઉત્પના સમાન 'चरम' ४उपाय छे. मे मने मेरे विश्रेणीमा स्थित पृथ६ पृथ६ मे से मारा प्रदेशमा माद थाय छ, तया "अवक्तव्यौ” उपाय छे. मे मारे समय भणीन 'चरम-अवक्तव्यो वाय छ __ ५५ प्रदेशी २४५ ४थयित् चरमौ-अवक्तव्य ५५५ पाय छे. ते ॥ शत-न्यारे પંચ પ્રદેશી સ્કન્ધ આગળ કહેલી વીસમી સ્થાપનાના અનુસાર પાંચ આકાશ પ્રદેશમાં અવગાહન કરે છે. તેમાંથી બે પરમાણુ ઉપર સમશ્રેણીમાં સ્થિત બે આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે. બે પરમાણુ નીચે સમણુમાં સ્થિત બે આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે. અને એક પરમાણુ અંતમાં વચ્ચે વચ્ચે સ્થિત રહે છે ત્યારે બે ઊપરના પરમાણુ श्री प्रशान॥ सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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