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प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चस्माचरमत्वनिरूपणम् १३७ वक्ष्यये-तद् व्यपदेशश्च द्विपदेशिकवद्वोध्यः किन्तु-'नो अचरमे' त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो नो अचरमो भवति द्विप्रदेशिकस्कन्धवत् , 'सिय अक्त्तव्वए' स्यात्-कदाचित् त्रिप्रदेशिका स्कन्धः अवक्तव्यो भवति, यदा हि त्रिप्रदेशिकः स्कन्धः एकस्मिन्नाकाशप्रदेशेऽवगाहते तदा परमाणुवत् चरमाचरमव्यपदेशहेत्वभावात् चरमाचरमशब्दाभ्यां वक्तुमशक्यतया अवक्तव्यो भवति, अथ चतुर्थादि अष्टमभङ्गपर्यन्तं प्रतिषेधमाह-'नो चरमाई त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो न चरमाणि व्यपदिश्यते, प्रागुक्तयुक्तेः, 'नो अचरमाई' नो वा अचरमाणि इति व्यपदेशः 'नो अवत्तव्ययाई नो वा अवक्तव्यानि इति व्यपदेशः प्रागुक्तयुक्तेः , 'नो चरमे य अचरमे य' नो चरमश्च अचरमश्च त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'नो चरमे य अचरमाई नो चरमश्च अचरमाणि च त्रिप्रदेशिकः स्कन्धः, अथ त्रिप्रदेशिकस्कन्धे नवमभङ्गस्तु संभवति इत्याह-'सियचरमाई च अचरमे य' स्यात्-कदाचित् चरमौ च अचरमश्च त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, चरमत्व कहलेना चाहिए। किन्तु त्रिप्रदेशी स्कंध, द्विप्रदेशी स्कंध के समान अचरम नहीं होता। कथंचितू अवक्तव्य भी है, क्योंकि जब कोई त्रिप्रदेशी स्कंध एक ही आकाश प्रदेश में अवगाहन करता है, तब परमाणु के समान उसमें चरम और अचरम का व्यवहार नहीं हो सकता, अतएव वह अवक्तव्य कह लाता है। ___ अब चौथे से आठवें भंग पर्यन्त का निषेध करते हैं-त्रिप्रदेशी स्कंध 'चरमाणि' (चरम का बहुवचन, अर्थातू बहुत चरम) नहीं कहा जा सकता, इस सबंध में युक्ति पहले कही जा चुकी है। इसी प्रकार वह 'अचरमाणि' और 'अवक्तव्यानि' भी नहीं कहा जा सकता। त्रिप्रदेशी स्कंध 'चरम अचरम' भी नहीं', 'चरम-अचरमाणि' भी नहीं कहा जा सकता। उसमें नौवां भंग संभव है, यह बतलाते हैं-त्रिप्रदेशी स्कंध कथंचित् 'चरमाणि-अचरम' कहा जा सकता है। जब त्रिप्रदेशी स्कंध समश्रेणी में स्थित तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ કહેવાશે. દ્વિપદેશી ઔધની જેમજ તેમનું ચમત્વ સમજી લેવું જોઈએ. કિન્તુ ત્રિપ્રદેશી સ્કન્દ, દ્ધિપ્રદેશી સ્કન્ધના સમાન ચરમ નથી લેતા. તે કથંચિત્ અવક્તવ્ય પણ છે, કેમકે જ્યારે કેઈ ત્રિપ્રદેશી સ્કન્ધ એક જ આકાશ પ્રદેશમાં અવગાહન કરે છે. ત્યારે પરમાણુના સમાન એમાં ચરમ અને અચરમને વ્યવહાર નથી થઈ શકતો, તેથી જ તે અવક્તવ્ય કહેવાય છે.
इवे याथाथी मामा म सुधान निषेध ४२ छ. निशी २४.५ 'चरमाणि' (ચરમનું બહુવચન, અર્થાત્ ઘણા ચરમ) નથી કહી શકાતા, એ બાબતમાં યુક્તિ પહેલા सतावेसी छ, ४ ॥२ ते 'अचरमाणि' भने अवक्तव्यानि ५ नथी ४ाता, विप्रदेश
न्ध "यम २मयरम' ५ नथी, 'चरम-अचरमाणि' ५ नथी ही शता. तभा नभा मना सन छ, त मतावे. छ. त्रिप्रदेशी २४५ यथित 'चरमाणि, अचरम डी
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩