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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चस्माचरमत्वनिरूपणम् १२९ अवक्तव्यश्च २१ नो चरमश्च अचरमाणि च अवक्तव्यानि च २२ स्यात् चरमौ च अचरमश्च अवक्तव्य श्च २३ स्यात् चरमौ च अचरमश्च अवक्तव्यौ च २४ स्यात् चरमौ च अचरमौ च अवक्तव्यश्च २५ स्यात् चरमौ च अचरमौ च अवक्तव्यौ च २६ सप्तप्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा, गौतम! सप्तप्रदेशिकः खलु स्कन्धः स्यात् चरमः १ नो अचरमः २ स्यात् अवक्तव्यः ३ नो चरमाणि ४ नो अचरमाणि ५ नो अवक्तव्यानि ६ स्यात् चरमश्च अचरमश्च ७ स्यात् चरमश्च अचरमौ च ८ स्यात् चरमौ च अचरमश्च ९ स्यात् चरमौ च अचरमौ च और अवकतव्यानि नहीं, (२०) (नो चरमे य अचरमाइं च अवत्तव्वए य) चरम, अचरमाणि और अवक्तव्य नहीं, (२१) (नो चरमे य अचरमाइंच अवत्तव्वयाइंच) चरम, अचरमाणि और अवक्तव्यानि नहीं, (२२) (सिय चरमाई च अचरमेय अवत्तव्यए य (कथंचित् चरमाणि, अचरम और अवक्तव्य नहीं, (२३) (सिय चरमाइं च अचरमे य अवत्तव्ययाइं च) कथंचित् चरमाणि अचरम और अवक्तव्यानि है, (२४) (सिय चरमाइं च अचरमाइं च अवत्तव्वए य) कथंचित् चरमाणि, अचरमाणि औरं अवक्तव्य है, (२५) (सिय चरमाइं च अचरमाइं च अवत्तव्वयाई च) कथंचित् चरमाणि अचरमाणि और अवक्तव्यानि है, (२६) __ (सत्त पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ?) भगवन् ! सप्तप्रदेशी स्कंध के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! सत्तपएसिए खंधे) गौतम ! सप्तप्रदेशी स्कंध (सिय चरिमे) कथंचितू चरम है, (१) (णो अचरिमे) अचरम नहीं है, (२) (सिय अवत्तव्वए) कचित् अवक्तव्य है, (३) (णो चरिमाइं) चरमाणि नहीं है, (४) (णो अचरि मयम, मने अवतन्य छे. १८ (नो चरमेय अवत्तव्ययाइं च) ५२म, अन्य२म अने 14४तव्यानि नथी, २० (नो चरमेय अचरमाइं च अवत्तव्वएय) य२म २५यरम मने 44तव्य नथी, २१ (नो चरमे य अचरमाइं च अवत्तव्ययाइं च) यरम, मयरमाण भने मवतव्यानि नथी, २२ (सिय चरमाइं च अचरमेय अवत्तव्वए य) ४थायित् यसमा अय२म मन म१४तव्य नथी. २३ (सिय चरमाइं च अचरमे य अवत्तव्वयाई च) ४५यित् ५२मान अय२म २५२ २०१४तव्यानि छ, २४ (सिय चरमाइं च अचरमाइच अवत्तव्बए य) थयित् यरमाण, अयरमाण, मन अवतव्य छ, २५ (सिय चरमाई च अचरमाइं च अवत्तव्वयाइच) अथयित् य२भा अयमा मन अवतव्यानि छ, २६ (सत्तपएसिणं भंते ! खंधे पुच्छा ?) सावन् ! सस प्रशी ॐन्धन विषयमा २७ ? (गोयमा ! सत्तपएसिए खंधे) हे गौतम ! सत प्रदेशी २४५ (सिय चरिमे) ४थायित् यरिभ छ, १ (णो अचरमे) २सयरम नथी, २. (सिय अवत्तव्वए) थायित् सातव्य छे 3 (णो चरमाइ) यरमाण नथी, ४ (णो अचरमाईच) अयरमाण नथी, ५ (णो अवत्तव्बयाई) २५१४व्यानि नथी, ६ (सिय चरमे य अचरमेय) ४थयित. य२म भने श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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