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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू० १ चरमाचरमत्वनिरूपणम् अचरमान्तप्रदेशाश्च द्वयेऽपि विशेषाधिकाः, लोकालोकस्य खलु भदन्त ! अचरमस्य च चर: माणाञ्च चरमान्तप्रदेशानाश्च अचरमान्तप्रदेशानाञ्च द्रव्यार्थतया प्रदेशार्थतया द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम! सर्वस्तोकम् लोकालोकस्य द्रव्यार्थतया एकमेकम् अचरम, लोकस्य चरमाणि असंख्येयगुणानि, अलोकस्य चरमाणि विशेषाधिकानि, लोकस्य च अलोकस्य च अचरमं च चरमाणि च द्वयान्यपि विशेषाधिकानि, प्रदेशार्थतया सर्वस्तोकाः लोकस्य चरमान्तप्रदेशाः, अलोकस्य चरमान्तप्र. अनंतगुणा) अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणा हैं (चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया) चरमान्तप्रदेश और अरमान्तप्रदेश दोनों विशेषाधिक हैं। (लोगालोगस्स णं भंते ! अचरमस्स य, चरमाण य, चरमंतपएसाण य, अचरमंतपएसाण य) हे भगवन् ! लोकालोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में (दव्वट्ठयाए) द्रव्य की अपेक्षा (पएसट्टयाए) प्रदेशों की अपेक्षा (दव्वट्ठपएसट्टयाए) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा बा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (सव्वत्थोवे) सब से कम (लोगालोगस्स) लोकालोक के (दव्वट्ठयाए) द्रब्य की अपेक्षा से (एगमेगे अचरमे) एक-एक अचरम है (लोगस्स चरमाइं असंखेज्जगुणाई) लोक के चरम असंख्यातगुणा हैं (अलोगस्स चरमाइं विसेसाहियाई) अलोक के चरम विशेषाधिक हैं, (लोगस्स य अलोगस्स य अचरमं य चरमाणि य) लोक और अलोक का अचरम और चरमाणि (दोवि) दोनों (विसेसाहियाई) विशेषाधिक हैं (पएसट्टयाए सव्वत्थोवा लोगस्स चरमंतपदेसा) प्रदेशों की अपेक्षा से सब से कम लोक के छ (अचरमंतपएसा अणंतगुणा) २५५२मान्त प्रदेश मनन्तng छ (चरमंत-कएसा य अचरमतपदेसा य दोषि विसेसाहिया) ५२मान्त प्रदेश अने, भयभान्त प्रदेश मन्द विशेषाधि छ (लोगालोगस्स णं भंते ! अचरमस्स य चरमाण य- चरमंतपएसाण य, अवरमंतपएसाण य) भगवन् ! alslatset अन्यभ, ५२भी, ५२मान्त ।। मने अयभान्त प्रदेशमा (दब्वट्ठयाए) द्रश्यनी अपेक्षाये (पएसट्ठयाए) प्रशानी अपेक्षाये (दव्वट्रपएस ट्याए) द्रव्य भने प्रशानी अपेक्षा (कयरे कयरे हितो) अनाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) २५६५, , तुल्य 1241 विशेषाधि छ ? (गोयमा !) गौतम ! (सव्वत्थोवे) साथी माछा (लोगालोगस्स) aashaasan (दब्वट्टयाए) द्रव्यनी अपेक्षाथी (एगमेगे अचरमे) मे 2४ मयरम छ (लोगस्स चरमाई असंखेज्जगुणाई) alना यरम मस ध्यातमा छ (अलोगस्स चरमाइं विसेसाहियाई) aना यम विशेषाधिछे (लोगस्स य अलोगस्स य अचरमय चरमाणि य) ४ मने मोना भयरमा भने यभाव (दोवि) भन्ने (विसेसाहियाइ) विशेषाधि छ (पएसट्टयाए सव्वत्थोवा लोगस्स શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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