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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू. ५ कायद्वारनिरूपणम् 9 पृथिवीकायिकाः अपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, अष्कायिकाः अपर्याप्तका विशेषाधिकाः, वायुकायिकाः अपर्याप्तका विशेषाधिकाः, तेजस्कायिकाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः, पृथिवीकायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, अष्कायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, तेजस्कायिकाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः पृथिवीकायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, अष्कायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, वायुकायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, वनस्पतिकायिकाः अपर्याप्तकाः अनन्तगुणाः, सकायिकाः अपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, वनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः सकायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, सकायिकाः विशेषाधिकाः ॥ ५ ॥ र्याप्त विशेषाधिक हैं ( आउकाइया अपज्जन्तगा विसेसाहिया) अपका यिक अपर्याप्त विशेषाधिक हैं (चाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) वायुकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक हैं (तेउकाइया पज्जतगा संखेज्ज - गुणा) तेजस्कायिक पर्याप्त संख्यातगुणा हैं ( पुढविकाइया पज्जत्ता विसेसाहिया) पृथिवीकायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं ( आउकाइया पज्जत्ता विसेसाहिया) अष्कायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं (याउकाइया पज्जत्ता विसेसाहिया) वायुकायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं (वणस्सइकाइया अपजत्तगा अनंतगुणा ) वनस्पतिकायिक अपर्याप्त अनन्तगुणा हैं ( सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) सकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक हैं (वणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ) वनस्पतिकायिक पर्याप्त संख्यातगुणा हैं ( सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया) सकायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं (सकाइया विसे साहिया) सकायिक विशेषाधिक हैं ॥ ५ ॥ यस्ति असभ्यात गुणा छे ( पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) पृथ्वी अयि ४ अपर्याप्त विशेषाधि! छे ( आउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया ) ४जायि अपर्याप्त विशेषाधिः छे (वाउका इया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) वायुप्रायिए अयर्याप्त विशेषाधिः छे ( ते उकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ) तेन्ाथि पर्याप्त संख्यात छे (पुढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया) पृथ्वी अयि पर्याप्त विशेषाधिः छे (आउकाइया पज्जत्ता विसेसाहिया) भजामि पर्याप्त विशेषाas छे (वाउकाइया पज्जत्ता विसेसाहिया) वायुप्रायिए पर्याप्त विशेषाधि छे ( वणरसइकाइया अपज्जत्तगा अनंतगुणा ) वनस्पतियिः अपर्याप्त अनन्त गुण छे (सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) साथि अपर्याप्त विशेषाधिः छे (वणरसइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ) वनस्पतियिः पर्याप्त संख्यात गो छे (सकाइया पज्जत्तगा विसेसा हिया) साय पर्याप्त विशेषाधि छे (सकाइया विसेसाहिया) सायि विशेषाधि ॥ ५ ॥ प्र० ११ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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