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________________ ९३४ प्रज्ञापनासूत्रे तिर्यग्गतिः खलु भदन्त । कियन्तं कालं विरहिता उद्वर्तनया प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन द्वादश मुहूर्तान् मनुष्यगतिः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उद्वर्तनया प्रज्ञप्ता ! गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन द्वादश मुहूर्तान, देवगतिः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उद्वर्तनया प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टेन द्वादश मुहूर्तान् । टीका -- अथ उपर्युक्त संग्राहक गाथार्थमेव क्रमेण विशदयितुमाह- 'निरयगईण भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववायेणं पण्णत्ता ? गौतमः पृच्छति - हे भंते! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणाए ? ) हे भगवन् ! तियंचगति कितने काल तक उद्वर्त्तना से रहित कही है ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) हे गौतम! जघन्य एक समय तक, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त्त तक (मणुयगई णं भंते ! केवइयं काल विरहिया उब्वहणाए ?) हे भगवन् ! मनुष्यगति कितने काल तक उद्वर्त्तना से रहिन कही है ? (गोयमा ! जणेणं एवं समयं उक्कोसे बारस मुहुत्ता) हे गौतम ! जघन्य एक समय तक, उत्कृष्ट बारह मुह तक (देवगई णं भंते! केवइयं काल बिरहिया उब्वहणाए पण्णत्ता ?) हे भगवन ! देवगति कितने काल तक उद्वर्त्तना से रहित कही है ? (गोयमा ! जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) हे गौतम ! जघन्य एक समक तक, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त्त तक " टीकार्थ - अव उल्लिखित संग्रहिणी गाथा के अर्थ का नाम से वि (तिरिय गईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पण्णत्ता ?) डे ભગવાન્ ! તિય ચ ગતિ કેટલા કાળ સુધી ઉનાથી રહિત કહેલી છે ? (गोयमा ! जहणेणं एग समयं उक्कोसेर्ण बारस मुहुत्ता) हे गौतम ! धन्य એક સમય, ઉત્કૃષ્ટ ખાર મુહૂત સુધી ( मणुय गईणं भंते! केवइथं कालं विरहिया उब्वट्टणाए पण्णत्ता) हे भगवन् ! भनुष्यगति डेंटला आज सुधी उद्दवर्तनाथी रहित उडेसी छे ? ( गोयमा ! जहणं एवं समयं उक्कोसेणं बारह मुहुत्ता) हे गौतम! धन्य भेड समय, ઉત્કૃષ્ટ ખાર મુહૂત સુધી (देव गईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पण्णत्ता ?) हे लग वन् ! देव गति डेटा आज सुधी उदूवर्तनाथी रहित उडेसी छे ? (गोयमा ! जईण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं बारह मुहुत्ता) हे गौतम! धन्य मे समय, ઉત્કૃષ્ટ ખાર મુહૂત સુધી ટીકા હવે ઉલિખિત સ`ગ્રહિણી ગાથાના અનુ` ક્રમથી વિવેચન શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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