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प्रज्ञापनासूत्रे पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारसमुहुत्ता, दारं ॥सू० १॥ __ छाया-निरयगतिः खलु भदन्त ? कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ता हे गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कृष्टेन द्वदशमुहूर्तान्, तिर्यग्गतिः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ता ? हे गौतम । जघन्येन एकं समयम् उत्कृष्टेन द्वादश मुहूर्तान् मनुष्यगतिः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं
___ उपपात- उद्वर्त्तना-वक्तव्यता शब्दार्थ-(निरयगई) नरकगति (णं) वाक्यालंकार (भते!) हे भगवन ! (केवइयं) कितने (काल) कालतक (विरहिया) रहित (उवयाएणं) उपपात से (पण्णत्ता) कही गई ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहगणेणं) जघन्य अर्थात् कम से कम (एक्कं समय) एक समय तक (उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) अधिक से अधिक बारह मुहूर्ततक
(तिरियगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता?) हे भगवन् ! तिर्यंचगति कितने काल तक उपपात से रहित कही गई है? (गोयमा ! जहण्णेणं एग समय उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) हे गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक
(मणुयगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता?) हे भगवन् ! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से रहित कही गई है ? (गोयमा ! जहण्णेणं एग समय उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) हे
पात व ना-वतव्यता शाय-(निरय गई) न२४ गति (णं) पाया।२ (भंते !) भगवन् ! (केवइयं) । (कालं) ॥ सुधी (विरहिया) २डित (उववाएण) 6५पातथी (पण्णत्ता) ४ाइ छ (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेणं) ४धन्य अर्थात् माछामां सौछ। (एक समय) से समय सुधी (उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) मधि४थी मधिर બાર મુહૂર્ત સુધી
(तिरियगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?) सन् ! तिययाति । समय सुधा ५५तथी २डित वामां मावी छ (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) 3 गौतम ! धन्य मे समय, ઉત્કૃષ્ટ બાર મુહૂર્ત સુધી
(मणुयगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता) मान्! भनुष्य गति ॥ ४॥ सुधी ५५तथी २हित ४ी छे ? (गोयमा ! जहvणे णं एगं समयं उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) 3 गौतम ! धन्य मे समय Grave
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨