SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 898
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.१५ जघन्यगुणकालकादिपर्यायनिरूपणम् ८८३ पर्यवैः षट्रस्थानपतितः, शीतस्पर्शपर्यवै स्तुल्यः, अवशेषैः सप्तस्पर्शपर्यवैः षट्स्थानपतितः, एवमुत्कृष्टगुणशीतोऽपि, अजघन्यानुत्कृष्टगुणशीतोऽपि एवञ्चेव, नवरं स्वस्थाने षट्स्थापतितः, एवमुष्णस्निग्धरूक्षाः यथाशीतः । परमाणुपुद्गलस्य तथैव प्रतिपक्षः सर्वैः न भण्यते इति भणितव्यम् । सत्तफासपज्जवेहिं छटाणवडिए) शेष सात स्पर्शो से षट्स्थानपतित (एवं उक्कोसगुणसीए वि) इसी प्रकार उत्कृष्टगुण शीत भी (अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव) मध्यमगुण शीत भी इसी प्रकार (नवरं सहाणे छहाणवडिए) विशेष यह कि स्वस्थान में वह षट्स्थानपतित है (एवं उसिणाणिद्वरुक्खे जहा सीते) उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श शीत स्पर्श के समान __(परमाणुपोग्गलस्स) परमाणुपुद्गल का (तहेव) उसी प्रकार (पडिवक्खो) प्रतिपक्ष (सव्वेसि) सवका (न भण्णइ) नहीं कहा जाता (इति भाणियव्य) ऐसा कहना चाहिए' ___टीकार्थ-अव जघन्यगुणकाले आदि परमाणुपुद्गल आदि के पर्यायों की प्ररूपणा की जाती है कृष्ण, नील आदि के वर्षों के दो प्रकार गंध के, पाँच प्रकार के रस के और आठों प्रकार के स्पर्शो के तरतमभाव की अपेक्षा से अनन्त अनन्त भेद होते हैं। तदनुसार कृष्ण वर्ण भी अनन्त प्रकार (अवसेसेहिं सत्तफासपज्जबेहिं छट्ठाणवडिए) शेष सात २५थी पट्थान पतित (एवं उक्कोसगुण सीए वि) से प्रारे कृष्ट गुण शीत ५५Y (अज हण्णमणुक्कोसगणसीए वि एवं चेव) मध्यम गुएशीत ५ से प्रारे (नवरं सदाणे छद्राणवडिए) विशेष से स्वस्थानमा त षट्स्थान पतित छ. (एवं उसिण णिद्धरुक्खे जहा सीते) Suly, विनय भने ३६ २५श शीत २५ । समान ___(परमाणुपोग्गलस्स) ५२मा पुराना (तहेव) ते४ ५४ारे (पडिवक्खो) प्रतिपक्ष (सब्वेसिं) अधाना (न भण्णइ) नथी वात। (इति भाणियव्वं) सेम કહેવું જોઈએ. ટીકાળું—હવે જઘન્ય ગુણ કાળા આદિ પરમાણુ પુદ્ગલ આદિના પર્યાની પ્રરૂપણ કરાય છે— કૃષ્ણ નીલ આદિ વણેના બે પ્રકારના ગંધ, પાંચ પ્રકારના રસ, અને આઠ પ્રકારના સ્પર્શોને તરતમ ભાવની અપેક્ષાએ અનન્ત-અનન્ત ભેદ થાય છે. તદનુસાર કૃષ્ણ વર્ણ પણ અનન્ત પ્રકારના છે કૃષ્ણ વર્ણની બધાથી ઓછી શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy