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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ . १४ द्विप्रदेशिकपुद्गल पर्याय निरूपणम् ८३९ जघन्यस्थितिकस्य असंख्येयप्रदेशिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया चतु:स्थानपतितः अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः स्थित्या तुल्यः वर्णादिभिः, उपरितन चतुःस्पश्च षट्स्थानपतितः, एवम् उत्कृष्ट स्थितिकोऽपि अजघन्यानुत्कृष्टस्थितिक एवञ्चैव नवरम् स्थित्या चतुःस्थानपतितः जघन्यस्थितिकानाम नन्तप्रदेशिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ता पर्यवाः प्रज्ञप्ताः तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्यस्थितिकानामनन्तप्रदेशिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यस्थितिकोऽनन्तप्रदेशिको जघन्यस्थितिकस्य अनन्तप्रदेशिकस्य एसिस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम! जघन्य स्थिति वाला असंख्यातप्रदेशी स्कंध जघन्य स्थितिवाले असंख्यातप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है (पए सट्टयाए चउडाणवडिए) प्रदेशों की अपेक्षा चतुःस्थानपतित (ओगाहणडयाए चउट्ठाण वडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित (ठिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य (वण्णाइ उवरिल्लच फासेहि य छाणवडिए) वर्णादि से तथा ऊपर के चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित है ( एवं उक्कोसठिइए वि) इसी प्रकार उत्कृष्टस्थितिवाला भी (अजहण्णमणुक्को सठिहए एवं चेव ) मध्यमस्थितिवाला भी इसी प्रकार (नवरं ठिईए चउट्टाणवडिए) विशेषता यह कि स्थिति से चतुःस्थानपतित होता है । ( जहण्णठियाणं अणय एसियाणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! जघन्य स्थितिवाले अनन्तप्रदेशी स्कंधो के कितने पर्याय है ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणणं भते एवं वुच्चइ-जहण्णठिइयाणं अनंतपए सियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? जहणठिइयस्स असंखेज्जपएसियस्स दव्बट्टयाए तुल्ले) हे गौतम! धन्य स्थितिવાળા અસંખ્યાત પ્રદેશી સ્કન્ધ જઘન્ય સ્થિતિવાળા અસંખ્યાત પ્રદેશી સ્કન્ધથી द्रव्यनी अपेक्षाये तुझ्यछे (पएसट्टयाए चउट्ठाणवाडए) प्रदेशोनी अपेक्षाये यतुःस्थान पतित (ओगाहणट्टयाए चउट्ठयाणवडिए) अवगाहनाथी यतुःस्थान पतित (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुझ्य (वण्णाइ उवरिल्ल चउफासेहिय छठ्ठाणचडिए) वर्णाद्विथी तथा उपरना थार स्पर्शोथी पटस्थान पतित छे ( एवं उक्कोसठिइए बि) से प्रारे उत्कृष्ट स्थितिवाजा पशु (अजहण्णमणुक्को सठिइए एवं चेव ) मध्यम स्थितिवाजा पशु ये रीते (नवरं ठिईए चउठ्ठाणवडिए) विशेषता मे કે સ્થિતિથી ચતુઃસ્થાન પતિત થાય છે. ( जहणठियाणं अनंतपएसियाणं पुच्छा ? ) धन्य स्थितिवाणा अनन्त अदेशी रहन्धोना डेंटला पर्याय छे ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! मनन्त पर्याय उद्या छे (से केणेट्ठेणं भते ! एवं बुच्चइ जहण्णठिइयाणं अनंत શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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