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________________ ८३० प्रज्ञापनासूत्रे -अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनके प्रदेशपरिवृद्धिः कर्तव्या यावद् दशप्रदेशिकस्य सप्त. प्रदेशाः परिवद्धिष्यन्ते जघन्यावगाहनकानां भदन्त ! संख्येयप्रदेशिकानां पृच्छा, गौतम! अनन्ताः, पर्यवाः प्रज्ञप्ताः तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यावगाहनकानां संख्येयप्रदेशीकानां अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ता:! गौतम ! जघन्यावगाहनकः संख्येयप्रदेशिको जघन्यावगाहनकस्य संख्येयप्रदेशिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया द्विस्थानपतितः अवगाहनार्थतया तुल्यः स्थित्या चतुःस्थानपतितः, (णवरं अजहण्णुक्कोसोगाहणए पएसवुड्डी कायचा) विशेष यह कि मध्यम अवगाहना वाले में एक-एक प्रदेश की वृद्धि करना चाहिए (एवं जाव दसपएसियस्स सत्तपएसा परिवड्विज्जति) इस प्रकार यावत् दशप्रदेशी के सात प्रदेश बढते हैं (जहण्णोगाहणगाणं भंते ! संखेज्जपएसियाणं पुच्छा?) हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले संख्यात प्रदेशी पुद्गलों की पृच्छा ? (गोयमा ! अर्णता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं मंते ! एवं युच्चइ-जहण्णोगाहणगाणं संखेजपएसियाणं अणंता पनवा पण्णत्ता?) किसकारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा है कि जघन्य अवगाहना वाले संख्यात प्रदेशी पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा! जहण्णोगाहणए संखेजपएसिए जहण्णोगाहणगस्स संखिजपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले) हे गौतम जघन्य अवगाहना वाला एक संख्यात प्रदेशी पुद्गल दूसरे जघन्य अवगाहना वाले संख्यात प्रदेशी पुद्गल जाव दस पएसिए णेयव्व) ये ४ारे यावतू ६.२५ प्री सभा ने ये (णवरं अजहण्णुक्कोसोगाहणए पएसवुटूढी कायब्वा) विशेष से मध्यम अप हुन वाणामा ४ से प्रशनी वृद्धि ४२वी नये (एवं जाव दसपएसियस्स सत्त पएसा परिवढिज्जति) मेरीत यावतू ४० प्रशाना सात प्रदेश १ छ (जहण्णोगाहणगाणं भंते ! संखेज्जपएसियाणं पुच्छा ?) 3 भगवन् धन्य 244आईनावारी संध्यात अशी पुगतानी २७।? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चई-जहण्णोगाहणगाणं संखेजपएसियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) ॥ ४।२णे हे समपन् ! કહ્યું છે કે જઘન્ય અવગાહનાવાળા સંખ્યાત પ્રદેશી પુદ્ગલેના અનન્ત પર્યાય हा छ ? (गोयमा ! जहण्णोगाहणए संखेज्जपएसिए जहण्णोगाहणस्स संखिज्ज. पएसियस दव्वद्वयाए तुल्ले) गौतम ! धन्य मानापामा २४ सभ्यात પ્રદેશી પુદ્ગલ બીજા જઘન્ય અવગાહનાવાળા સંખ્યાત પ્રદેશી પુદગલેથી દ્રવ્યની इष्टिमे तुक्ष्य छ (पएसट्टयाए दुवाणवडिए) प्रशानी हष्टि विस्थान पतित શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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