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________________ ७५० प्रज्ञापनासवे नवरम् अवगाहनार्थतया त्रिस्थानपतितः, यथा आभिनिबोधिकज्ञानी तथा मत्यज्ञानी श्रुताज्ञानी अपि भणितव्यः, यथा अवधिज्ञानी तथा विभङ्गज्ञानी अपि भणितव्यः, चक्षुर्दर्शनी अचक्षुर्दर्शनी च यथा आभिनिबोधिकज्ञानी, अवधिदर्शनी यथा अवधिज्ञानी यत्र ज्ञानानि तत्र अज्ञानानि न सन्ति, यत्र अज्ञानानि तत्र ज्ञानानि न सन्ति, यत्र दर्शनानि तत्र ज्ञानान्यपि अज्ञानान्यपि, केवलज्ञानिनां भदन्त ! मनुष्याणां एवं चेव) मध्यम अवधिज्ञानी इसी प्रकार (नवरं ओगाहणट्टयाए चउढाणवडिए) विशेष यह कि अवगाहना से चतुःस्थानपतित है (सहाणे छट्ठाणवडिए) स्वस्थान में षटूस्थानपतित है (जहा ओहिनाणी तहा मणपज्जवनाणी वि भाणियव्वे) जैसा अवधिज्ञानी वैसा ही मनःपर्यवज्ञानी भी कहना चाहिए (नवरं ओगाहणट्टयाए तिहाणवडिए) विशेषता यह कि अवगाहना से त्रिस्थानपतित है (जहा आभिणियोहियनाणी तहा मइअण्णाणी सुय. अण्णाणी वि भाणियब्वे) मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी आभिनिबोधिकज्ञनी के समान कहना चाहिए (जहा ओहिनाणी तहा विभंगनाणी वि भाणियब्वे) जैसे अवधिज्ञानी वैसे ही विभागज्ञानी भी कहना चाहिए (चक्खुदसणी अचक्खुदसणी य जहा आभिणिबोहियनाणी) चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी आभिनिबोधिकज्ञानी के समान (ओहिदंसणी जहा ओहिनाणी) अबधिदर्शनी अवधिज्ञानी के समान (जत्थ नाणा तत्थ अण्णाणा नत्थि) जहां ज्ञानी ५Y (अजहण्णमणुक्कोसोहिनाणी एवं चेव) मध्यम अवधिज्ञानी से भरे (नवर ओगाहणठ्ठयाए चट्टाणवडिए) विशेष से छे म नाथी यतःस्थान पतित छे (सठ्ठाणे छट्ठाणवडिए) स्वस्थानमा ५८स्थान पतित छ (जहा ओहिनाणी तहा मणपज्जवनाणी वि भाणियव्वे) २१॥ अवधिज्ञानी तवा भना५य ज्ञानी ५५५ ४ नये. (नवरं ओगाहणद्वयाए तिढाणवडिए) विशेष साईनाथ त्रिस्थान पतित छे (जहा आभिणिबोहियनाणी तहा मइ. अण्णाणी सुयअण्णाणी वि भाणियब्वे) भत्यज्ञानी भने श्रुताज्ञानी मालिनिमाथि जानीना समान वान (जहा ओहिनाणी तहा विभंगनाणी वि भाणियव्वे) २॥ भवधिज्ञानी तेवा विज्ञानी वा नये. (चक्खुदंसणी अचक्खुदसणी य जहा आभिणिबोहियनाणी) यक्षुशनी मने अन्य दशनी मालिनिमाधिशानीना समान (ओहिदसणी जहा ओहिनाणी) अधिशनी मवधिज्ञानी समान (जत्थ नाणा तत्थ अण्णाणा नस्थि) न्यi शान छ त्यो मान नथा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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