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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.०११ मनुष्यपर्यायनिरूपणम् ७४९ प्रज्ञताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यतेजघन्यावधिज्ञानिनां मनुष्याणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः? गौतम ! जघन्यावधिज्ञानी मनुष्यो जघन्यावधिज्ञानिनो मनुष्यस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया त्रिस्थानपतितः, स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः द्वाभ्यां ज्ञानाभ्यां षट्स्थानपतितः, अवधिज्ञानपर्यवैस्तुल्यः, मनःपर्यवज्ञानपर्यवैः षद्स्थानपतितः, मिर्दर्शनैः षट्स्थानपतितः, एवमुत्कृष्टावधिज्ञानी अपि, अजधन्यानुत्कृष्टावधिज्ञानी एवञ्चेव, नवरम् अवगाहनार्थतया चतु:स्थानपतितः, स्वस्थाने षट्स्थानपतितः, यथा अवधिज्ञानी तथा मनःपर्यवाज्ञानी अपि भणितव्यः, हैं (से केणठेणं भंते एवं वुच्चइ-जहण्णोहिनाणीणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा कि जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं (गोयमा ! जहण्णोहिनाणी मणुस्से जहण्णोहिनाणिस्स मणूसस्स व्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्य जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्य से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य हैं (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की दृष्टि से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए तिहाणवडिए ठिइए तिहाणवडिए) अवगाहना और स्थिति से त्रिस्थानपतित है (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) वर्ण, गंध, रस स्पर्श के पर्यायों से (दोहिं नाणेहिं) दो ज्ञानों से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थापतित है (ओहिनाणपज्जवेहिं तुल्ले) अवधिज्ञान के पर्यायों से तुल्य है (मणपज्जवनाणपज्जवेहिं छहाणबडिए) मनःपर्यवज्ञान के पर्यायों से षटस्थानपतित है (तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणपडिए) तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित (एवं उक्कोसोहिनाणी वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी भी (अजहण्णमणुक्कोसोहिनाणी वुच्चइ-जहण्णोहिनाणीणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता १) गवन! शा २) सह्यु छ घन्य अपपिज्ञानी मनुष्याना मनन्त पर्याय छ (गोयमा ! जहण्णोनाणी मणुस्से जहण्णोहिनाणिस्स मणूसस्स दव्वट्ठयाए तूल्ले) गौतम । જઘન્ય અવધિજ્ઞાની મનુષ્ય જઘન્ય અવધિજ્ઞાની મનુષ્યથી દ્રવ્યની દૃષ્ટિએ तुक्ष्य छ (पएसटुयाए तुल्ले) प्रशानी ष्टये तुल्य छे (ओगाहणद्वयाए तिद्वाणवडिए ठिईए तिद्वाणवडिए) साना मन स्थितिथी त्रिस्थान पतित छ (वण्णगंधरसफासपज्जवहिं) पण, आध, २४, २५शन। पर्यायाथी (दोहि नाणेहि) मे शानाथी (छट्ठाणवडिए) ५८स्थान पतित छे (ओहिनाणपज्जवेहि तुल्ले) अवधि ज्ञानना पर्यायाथी तुल्य छ (मणपज्जवनाणपज्जवेहि छटाणवडिए) मन:पयज्ञानना पर्यायोथी पटस्थान पतित छ (तिहिं ईसणेहिं छद्राणवडिए) १५ इशनाथी ५८स्थान, पतित (एवं उक्कोसोहिनाणी वि) से 12 Be अवधि. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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