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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.४ सेन्द्रियद्वारनिरूपणम् ६१ तुल्या वा, विशेषाधिकावा गौतम ! सर्वस्तोकाश्चतुरिन्द्रियाः पर्याप्तकाः, पञ्चेन्द्रियाः पर्याप्तका विशेषाधिकाः द्वीन्द्रियाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, त्रिन्द्रियाः पर्याप्ताः विशेषाधिकाः, पञ्चेन्द्रियाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः चतुरिन्द्रियाः अपर्याप्तका विशेषाधिकाः, त्रीन्द्रियाः अर्याप्तकाः विशेषाधिका द्वीन्द्रिया अपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, एकेन्द्रियाः अपर्याप्तकाः अनन्तगुणाः सेन्द्रियाः अपर्याप्तकाः विशेषाधिकाः, एकेन्द्रियाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः सेन्द्रियाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकः, सेन्द्रियाः विशेषाधिकाः । द्वारम् ३ ॥ सू० ४ ॥ और अपर्याप्त में से ( कयरे कयरेहिंतो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया चा) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोपमा) हे गौतम! (सव्वत्थोवा चउरिंदिया पज्जत्तगा) सब से कम चौइन्द्रिय पर्याप्त हैं (पंचिंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया) पंचेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक हैं (बेइ दिया पज्जत्तगा विसेसाहिया) द्वीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक हैं ( तेइ दिया पज्जत्तगा विसेसाहिया) श्रीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक हैं ( पंचिंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा) पंचेन्द्रिय अपर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) चौन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं ( तेइ दिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) त्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं (बेइं दिया अपज्जन्तगा विसेसाहिया) दीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं (एगिंदिया अपज्जत्ता अनंतगुणा ) एकेन्द्रिय अपर्याप्त अनंतगुणा है ( सइदिया अपज्जत्तगा विसे साहिया) सेन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं (एगिंदिया पज्जन्त्तगा संखेज्जगुणा ) एकेन्द्रिय पर्याप्त संख्यातगुणा हैं ( सई दिया हिन्तो) अष्णु अनाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) महय, घया, तुझ्य या विशेषाधि छे (गोयमा) हे गौतम! (सव्वत्थोवा चउरिंदिया पज्जत्तगा) अधाथी शोछा यार इन्द्रिय पर्याप्त छे (पंचिंदिया पज्जत्तगा विसेसा हिया) पथेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधि४ छे (बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया) मे हन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधि छे (ते इंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया) त्र हन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिः छे (पंचिंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ) पंथेन्द्रिय अय र्याप्त असं ज्यात गुणा छे (चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेस हिया) यार इन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिछे (तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेस | हिया ) ऋणु इन्द्रिय शाय र्याप्त विशेषाधि छे (एगिंदिया अपज्जत्तगा अनंत गुणा) भेडेन्द्रिय अपर्याप्त अनन्त गुणा छे ( सइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) सेन्द्रिय अपर्याप्त विशेपाधि छे (एगिंदिया पज्जतगा असंखेज्जगुणा) येडेन्द्रिय पर्यास असभ्यात શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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