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________________ ७२० प्रज्ञापनासूत्रे , अवधिज्ञानी तथा विभङ्गज्ञानी अपि चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी च यथा आभि निबोधिकज्ञानी, अवधिदर्शनी, यथा अवधिज्ञानी, यत्र ज्ञानानि, तत्र अज्ञानि न सन्ति, यत्र अज्ञानानि तत्र ज्ञानानि न सन्ति यत्र दर्शनानि तत्र ज्ञानान्यपि अज्ञानान्यपि सन्तीन्ति भणितव्यम् ।। 9 टीका - अथ जघन्याद्यवगाहनकानां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्यवान् प्ररूपयितुमाह-' जहण्णोगा हणगाणं भंते ! पंविदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! जघन्यावगाहनकानां - जघन्यम् जैसी आभिनिवोधिकज्ञानी की वक्तव्यता वैसी ही मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी की (जहा ओहिनाणी तहा विभंगनाणी वि) जैसी अवधिज्ञानी की वक्तव्यता वैसी ही विभंगज्ञानी की (चक्खुदसणी अचक्खुणी जहा आभिणिबोहियनाणी) चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी आभिनिबोधकज्ञानी के समान (ओहिदंसणी जहा ओहिनाणी) अवfarर्शनी अवधिज्ञानी के समान ( जत्थ नाणा तत्थ अन्नाणा नत्थि) जहां ज्ञान हैं वहाँ अज्ञान नहीं है (जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा नत्थि) जहां अज्ञान हैं वहां ज्ञान नहीं है ( जत्थ दंसणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि अस्थित्ति भाणिय) जहां दर्शन हैं वहां ज्ञान भी और अज्ञान भी होते हैं ऐसा कहना चाहिए । टीकार्थ- - अब जघन्य अवगाहनावाले पंचेन्द्रिय तिर्यच जीवों के पर्यायों की प्ररूपणा की जाती है गौतम प्रश्न करते हैं - हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय રીતે આભિનિષેાધિકજ્ઞાનીની વક્તવ્યતા તેવીજ રીતે મત્યજ્ઞાની અને શ્રુતાજ્ઞાનીની ( जहा ओहिनाणी तहा विभंगनाणी वि) नेवी अवधिज्ञानीनी वक्तव्यता तेवी विलज्ञानीनी (चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी जहा आभिणिबोहियनाणी) यक्षुदर्शनी ने अयक्षुहर्शनी मलिनिमेोधिज्ञानीना समान (ओहिदंसणी जहा ओहिनाणी) अवधिदर्शनी अवधिज्ञानीना समान ( जत्थ णाणा तत्थ अन्नाणा नत्थि ) न्यां ज्ञान छे त्यां अज्ञान नथी ( जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा णत्थि ) ज्यां अज्ञान छे त्यां ज्ञान नथी ( जत्थ दंसणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि अस्थित्ति भाणियां) જ્યાં દર્શન છે ત્યાં જ્ઞાન પણ છે અને અજ્ઞાન પણ હેાય છે એવુ' કહેવુ જોઇએ. ટીકા-હવે જઘન્ય અવગાહનાવાળા પંચેન્દ્રિય તિય ચ જીવેાના પર્યાંચેની પ્રરૂપણા કરાય છે— શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે હે ભગવન્ ! જઘન્ય અવગાહનાવાળા પંચે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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