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प्रमेययोधिनी टीका पद ५ सू.१० पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्यायाः ७१९ तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः, स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः आभिनिवोधिकज्ञानश्रुतज्ञानपर्यवैः षट्स्थानपतितः अवधिज्ञानपर्यवैस्तुल्यः, अज्ञानानि न सन्ति, चक्षुदर्शनपर्यवैः अचक्षुर्दर्शनपर्यवैश्च अवधिदर्शनपर्यवैः षट्स्थानपतितः, एवमुत्कृष्टावधिज्ञानी अपि, अजघन्यानुत्कृष्टावधिज्ञानी अपि एवञ्चव, नवरं स्वस्थाने पट्रस्थानपतितः, यथा आभिनिबोधिकज्ञानी तथा मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी च, यथा (दचट्याए तुल्ले) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य (पएमट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित (ठिईए तिट्ठाणवडिए) स्थिति से त्रिस्थानपतित (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के पर्यायों से (आभिणियोहियनाणसुयणाणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए) मतिज्ञान श्रुतज्ञान के पर्यायो से षट्स्थानपतित (ओहिनाणपज्जवेहिं तुल्ले) अवधिज्ञान के पर्यायो से तुल्य (अन्नाणा नत्थि) अज्ञान उसमें नहीं होते । (चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य) चक्षुदर्शन के पर्यायों और अचक्षुदर्शन के पर्यायों से (ओहिदंसणपज्जवेहि) अवधिदर्शन के पर्यायों से (छट्ठाणवडिए) षट्रस्थानपतित (एवं उक्कोसो हिनाणी वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी भी (अजहण्णमणुक्कोसोहिनाणी वि एवं चेव) मध्यम अवधिज्ञानी भी इसी प्रकार (णवरं) विशेष (सहाणे छट्ठाणवडिए) स्वस्थान में षट्स्थानपतित है __(जहा अभिणियोहियनाणी तहा मइ अण्णाणी सुय अण्णाणी) द्र०यनी अपेक्षा तुझ्य (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रशानी अपेक्षा तुझ्य (ओगाह णट्टयाए च उट्ठाण वडिए) २५॥नाथी यतु:स्थान पतित (ठिइए तिट्ठाण वडिए) स्थितिनी त्रिस्थान पतित (वण्ण गंध रस फास पज्ज वेहिं)
व -२२-२५शना पर्यायाथी (आभिणिबोहियनाण सुयणाणपज्जवेहिं छटाणवडिए) भतिज्ञान, श्रुतज्ञानना ५र्यायोथी षट्स्थान पतित (ओहिणाणपज्जवेहिं तुल्ले) २५१थि शानना पर्यायाथी तुझ्य (अन्नाणा नत्थि) अज्ञान तेन नथी डातु (चक्खुदसण पज्जवेहिं अचक्खुदसणपज्जवेहिं य) यक्षुशनना पायो भने अयश नना पर्यायोथी (ओहिदसणपज्जवेहिं) मवधिज्ञानना पर्यायोथी (छट्ठाणवडिए) ५८स्थान पतित (एवं उकोसोहिनाणी वि) मे शते उत्कृष्ट अधिशानी ५Y (अहण्णमणुक्कोसोहिनाणी वि एवं चेव) मध्यम अवधिज्ञानी ५५ मे मारे (णवर) विशेष (सटाणे छट्टाणवडिए) स्वस्थानमा ५८२थान पतित छ ।
(जहा आभिणिबीहियनाणी तहा मइ अण्णाणी सुय अण्णाणी) का
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨