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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ५ सू.९ द्वीन्द्रिय पर्यायनिरूपणम् हनार्थतया तुल्यः, स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः द्वाभ्यां ज्ञानाभ्याम् , द्वाभ्यामज्ञानाभ्याम् अचक्षुर्दर्शनपर्यवैश्च षट्स्थानपतितः, एवमुत्कष्टावगाहनकोऽपि, नवरं ज्ञानानि न सन्ति, अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनको यथा जघन्यावगाहनकः, नवरं स्वस्थाने अवगाहनया चतु:स्थानपतितः, जघन्यस्थितिकानां भदन्त ! द्वीन्द्रियाणां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यस्थितिकानां द्वीन्द्रियाणामनन्ताः पर्यवाः की अपेक्षा तुल्य (ओगाहणट्टयाए तुल्ले) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य (ठिईए तिट्ठाणवडिए) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) वर्ण गंध' रस, स्पर्श के पर्यायों से (दोहिं नाणेहिं) दो ज्ञानों से (दोहिं अण्णाणेहिं) दो अज्ञानों से (अचक्खुदंसणपज्जवेहि य) और अचक्षुदर्शन के पर्यायों से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित है (एवं उक्कोसोगाहणए वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाला भी (णवर) विशेष (णाणा णत्थि) उत्कृष्ट अवगाहना बाले में ज्ञान नहीं हैं (अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए जहा जहण्णोगाहणए) मध्यम अवगाहना वाला जघन्य अवगाहना वाले के समान (णवरं) विशेष (सहाणे ओगाहणए चउढाणवडिए) स्वस्थान में अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है __ (जहएणठिझ्याणं भंते ! वेइंदियाणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रियों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ (ओगाहणद्वयाए तुल्ले) ११॥ नानी अपेक्षाये तुल्य (ठईए तिद्वाणवडिए) स्थितिनी अपेक्षा त्रिस्थान पतित (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) वर्ष, ५, २स, २५शन। पर्यायाथा (दोहिं नाणेहिं) 2 शानाथा (दोहिं अण्णाणेहिं) मे अज्ञानाथी (अचक्खुदसण पज्जवेहिय) मने सयक्षुश नना पर्यायाथी (छद्वाणवडिए) ५८स्थान पतित छ (एवं उक्कोसोगाहणए वि) से रीत कृष्ट मानावा ५८ (नवरं) विशेष (णाणा णस्थि) उत्कृष्ट अवाहन पामi शान नथी तु (अजहण्ण मणुकोसोगाहणए जहा जहण्णोगाहणए) मध्यम माईना धन्य अव. नावाणानी समान (णवरं) विशेष (सटाणे ओगाहणाए चउदाण वडिए) સ્વસ્થાનમાં અવગાહનાની અપેક્ષાએ ચતુઃસ્થાન પતિત છે (जहण्णठिइयाणं भंते ! बेइंदियाणं पुच्छा ?) मावन् ! धन्य स्थितिवाणी दीन्द्रियाना विषयमा २७ ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम मनन्त पर्याय Jan छ (से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहण्णठिइयाणं बेइंदियाणं अणंता શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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