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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.७ असुरकुमाराणां पर्यायनिरूपणम् ६६१ छाया-जघन्यावगाहनकानां भदन्त ! असुरकुमाराणां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ता पर्यवाः प्रज्ञप्ताः । तत् केनार्थेन भदन्त ! एव मुच्यते जघन्यावगाहनकानाम् असुरकुमाराणाम् अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यावगाहनकोऽसुरकुमारो जघन्यावगाहनकस्य असुरकुमारस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया तुल्यः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, वर्णादिभिः षट्स्थानपतितः, आभिनिबोधिकज्ञानपयवैः, श्रुतज्ञानपर्यवैः, अवधि असुरकुमारादिपर्यायवक्तव्यता शब्दार्थ-(जहण्णोगाहगाणं भंते ! असुरकुमाराणं केवइया पन्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के कितने पर्याय हैं ? (गोयमा अणंता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय हैं (से केणट्टेणं भंते ! एवं पुच्चइ-जहण्णोगाहगाणं असुरकुमाराणं अणंता पजवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा ! जहण्णोगाहणए असुरकुमारे जहण्गोगाहणस्स असुरकुमारस्स ब्वट्ठयाए तुल्ले) हे गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला असुरकुमार दूसरे जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमार से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य हैं (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानतित है (वण्णाई हिं छट्ठाणवडिए) वर्ण आदि से षट्स्थानपतित हैं (आभिणियोहियनाणपज्जवेहिं ) आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों से (सुयनाणपज्जवेइिं) असु२मारा पर्याय १४तव्यता. हाथ-(जहण्णोगाहगाणं भंते ! असुरकुमाराणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?) भगवन् ! धन्य साना वाणा मसुरभाराना डेटा पर्याय छ १ (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) ॐ गौतम ! अनन्त पर्याय छे (से केणद्वेणं भंते ! एवं चुच्चइ-जहण्णागाहगाणं असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) भगवन् ! ध्या હેતુથી એમ કહેવાય છે કે જઘન્ય અવગાહનાવાળા અસુરકુમારોના અનન્ત पर्याय छ ? (गोयमा ! जहण्णोगाहणए असुरकुमारे जहण्णोगाहणरस असुरकुमारस्स दव्ययाए तुल्ले) गौतम ! ४ ४धन्य मानावा मसु२४भार मान्न ४५न्य अपना असु२शुभारथी द्रव्यनीष्टिये तुल्य छ (ओगाहण दृयाए तुल्ले) Aqानाथी तुल्य छ (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थितिथी यतु:स्थान पतित छे (वण्णाईहिं छट्ठाणवडिए) पहिथी ५८स्थान पतित छ (आभिणिबोहिय नाण पज्जबेहिं) मालिनिमाधि४ ज्ञानना पर्यायाधी (सुयनाण पज्जवेहिं) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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