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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५.५ पृथ्वीकायिकादीनां पर्यायनिरूपणम् ५८५ प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते अष्कायिकानाम् अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, गौतम ! अष्कायिकः अष्कायिकस्य द्रव्यर्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया - तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शमत्यज्ञानश्रुतज्ञानाचक्षुदर्शनपर्यवैः षट्स्थानपतितः, तेजःकायिकानां " (आउकाइयाण मंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?) भगवन् ! अष्कायिकों के कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ आउकाइयाणं अता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस हेतू से ऐसा कहा है कि अकायिकों के अनन्तपर्याय कहे गए हैं ? (गोयमा) हे गौतम! ( आउकाइए आउकाइयस्स दव्वद्वयाए तुल्ले) अष्कायिक दूसरे अष्कायिक से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है ( पट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है (ठिईए तिद्वाणवडिए) स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है (वण्ण-गंध-रस- फास - मई - अण्णाण - सुयअण्णाण - अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छाणवडिए) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान अचक्षुदर्शन के पर्यायों से षट्स्थान पतित हैं । (उकाइयाणं पुच्छा ?) तेजस्कायिकों के विषय में प्रश्न ? (गोयमा अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केण ( आकाइयाणं भंते! केवइया पज्जबा पण्णत्ता ?) भगवन् मच्छायिना डेंटला पर्याय उद्या हे ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! अनन्त पर्याय ४ह्या छे (से केणट्ठेन भंते ! एवं बुच्चइ आउकाइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता) ભગવન્ ! કયા હેતુથી એવું કહ્યું છે કે અાયિકાના અનન્ત પર્યાય કહેલા *? (ma! )3 silau ! (encangg encenguta coagule ged) 2428198 जीन अच्छायिस्थी द्रव्यनी अपेक्षाये तुझ्य छे (पएसट्टयाए तुल्ले) अहेशानी अपेक्षाथी तुझ्य छे (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहनानी अपेक्षाओ यतुःस्थानपतित छे (ठिईए तिट्ठाणवडिए) स्थितिनी अपेक्षा त्रिस्थान पतित छे (वण्णगंधरसा फास मईअण्णाण सुयअण्णाण अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छठाणवडिए) वर्षा गन्ध, रस, स्पर्श, भत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, अयक्षुहर्शनना पर्यायाथी ષસ્થાન પતિત છે ( ते काइयाणं पुच्छा ?) तेरसायिना विषयभां प्रश्न ? (गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय उद्या छे (से केणद्वेगं भंते ! ( एवं प्र० ७४ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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