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________________ प्रज्ञापनासूत्रे वा, संख्येयगुणाभ्यधिको वा, असंख्येयगुणाभ्यधिको वा, स्थित्या त्रिस्थानपतितः-स्याद्धीनः, स्यात्तुल्यः, स्यादभ्यधिकः, यदा हीनोऽऽसंख्येयभागहीनो वा, संख्येयभागहीनो वा, संख्येयगुणहीनो वा, अथाभ्यधिकः असंख्येयभागा भ्यधिको वा, संख्येयभागाभ्यधिको वा, संख्येयगुणाभ्यधिको वा, वर्णैः, गन्धैः, रसैः, स्पर्शी : मत्यज्ञानपर्यवैः, श्रुताज्ञानपयेवैः, अचक्षुर्दर्शनपर्यवैः षट्स्थानपतितः, अप्कायिकानां भदन्त ! कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः गुण अभहिए वा) असंख्यातभाग अधिक है, संख्यात भाग अधिक है, संख्यातगुण अधिक या असंख्यातगुण अधिक है। (लिईए तिहाणवडिए) स्थिति से त्रिस्थानपतित है (सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अम्महिए) कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य, कदाचित् अधिक है (जइ होणे असंखिज्जभाग हीणे वा, संखिज्जभाग हीणे वा, संखिजगुण हीणे वा) अगर हीन है तो असंख्यातभाग होन, संख्या तभाग हीन या संख्यातगुण हीन है (अह अभहिए) यदि अधिक है (असंखिजइ माग अन्भहिए था, संखिज्जइभाग अन्भहिए वा, संखिज्जगुणअभहिए वा) असंख्यातभाग अधिक, संख्यातभाग अधिक है संख्यातगुणा अधिक है (वण्णेहिं) वर्णोसे (गंधेहिं) गंधों से (रसंहि) रसों से (फासेहि) स्पर्शो से (मइअण्णाणपज्जवेहिं) मत्यज्ञान के पर्यायों से (सुपअण्णाणपज्जवेहिं) श्रुताज्ञान के पर्यायों से (अचक्खुदंसणपज्जबेहिं अचक्षुदर्शन के पर्यायों से (छट्टाणवडिए) षट्स्थानपतित है अब्भहिए या) AAVयात मा मधि छ, सण्यातमा मधि४ छ, सण्यात અધિક છે અગર અસંખ્યાત ગુણ અધિક છે. (ठिइए तिट्ठाणवडिए) स्थितिथी कि स्थान पतित छ (सिय हीणे सियतुल्ले सिय अभहिए) ४४ाथित् डीन; हथित तुल्य, ४ायित् अधि छ (जइ. हीगे असंखिज्जभागहीणे वा, संखिज्जभागहीणेवा, संखिज्जगुणहीणे वा) २ હીન છે તે અસંખ્યાત ભાગહીન, સંખ્યાત ભાગ હીન, અગર સંખ્યાત ગુણ हान छ (अह अब्भहिए) ने म४ि छ (असंखिज्जइभाग अब्भहिए वा संखिज्जइभाग अमहिए वा, संखिज्ज गुण अब्भहिए वा) असण्यात माय मधिर, सध्यात मा थि: २५१२ सयात गुण -मधि छे (वण्णेहिं) पणेथी (गंधेहि) गयी (रसेहिं) साथी (फासेहिं) स्यशेथिी (मइअण्णाण पज्जवेहिं) भत्य ज्ञानना पर्यायाथी (सुयअण्णाण पज्जवेहिं) श्रुताशानना पर्यायोथी (अचख़ुदसणपज्जवेहिं) मन्या४शनन ५योथी (छट्ठाणवडिए) ५८स्थान पतित छे. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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