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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.९ वैमानिकदेवानां स्थितिनिरूपणम् ५२५ पृच्छा, गौतम ! जघन्येन एकोनविंशतिः सागरोपमाणिः अन्तर्मुहूर्तों नानि, उत्कृप्टेन विंशतिः सागरोपमानि अन्तर्मुहूतौनानि, आरणे कल्पे देवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन विंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन एकविंशतिः सागरोपमाणि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन विंशतिः सागरोपमानि अन्तर्मुहूर्तोनानि, उत्कृष्टेन एकविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूतौनानि, अच्युते कल्पे देवानां पृच्छा, वीसं सागरोवमाइं) हे गौतम ! जघन्य उन्नीस सागरोपम, उत्कृष्ट वीस सागरोपम की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पज्जत्तयाणं पुच्छा?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोवमाइ अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम उनीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम वीस सागरोपम की।
(आरणे कप्पे देवाणं पुच्छा ?) आरण कल्प में देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं वीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाइं) हे गौतम ! जघन्य वीस सागरोपम की, उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम की (अपजत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त देयों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं
धन्य मागास सागरीयम, Gष्ट वीस सा॥२॥५मनी (अपज्जत्तयाण पुच्छा ?) मर्यासहीनी स्थिति सी ?) (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) गौतम धन्य ५५ मने उत्कृष्ट ५९ मन्तभुत (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्यायानी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णं एगूणवीसं सागरोवमाइं, अंतोमुहत्तणाई, उक्कोसेणं बीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुतणाई) गौतम ! धन्य मन्तમુહૂર્ત એછા ઓગણસ સાગરોપમની અને ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા વીસ સાગરોપમની.
(आरणे कप्पे देवाणं पुच्छा ?) २।२९४६५मा हेवोनी स्थिति की ? (गोयमा ! जहण्णेण वीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं एकवीसं सागरोवमाई) गौतम!
वन्य पीससारोपमनी, कृष्ट पीस साश५मनी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) मर्यात हेवोनी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) गौतम ! धन्य ५] भने पृष्ट ५ मन्तभुतानी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्त है। स्थिति क्षी ? (गोयमा ! जहण्णेण वीसं सागरोवमाइं, अंतोमुहु,
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨