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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सु.०८ ज्योतिष्कदेवानां स्थितिनिरूपणम् ५०१ चतुर्भागपल्योपमम्, उत्कृष्टेन पल्योपमम् वर्षशतसहस्राभ्यधिकम्, अपर्याप्तकानां चन्द्रदेवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन चतुर्भागपल्योपमम् अन्तर्मुहूतौनम्, उत्कृष्टेन पल्योपमम् वर्षशतसहस्राभ्यधिकम् अन्तर्मुहूर्तोनम्, चन्द्रविमाने खलु देवीनां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन चतुर्भागपल्योपमम्, उत्कृष्टेन अर्द्धपल्योपमम्, पश्चाशद्वर्षसहसाभ्यधिकम्, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि, उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुउक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का चौथाई भाग, उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की (अपजत्तयाणं चंदेवाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त चंद्र देवों की पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की पृच्छा ? (गोयमा ! जहणणेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समन्भहियं अंतोमुहुतूर्ण) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का चौथा भाग, अन्तर्मुहूर्त कम उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम और एक लाख वर्ष की। _(चंदचिमाणे णं देवीणं पुच्छा ?) चन्द्रविमान में देवियो की पृच्छा? (गोयमा ! जहण्णेणं चउभाग पलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवर्म पन्नास वाससहस्समभहियं) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग, उत्कृष्ट पचास हजार वर्ष अधिक आधा पल्योपम (अपज्जत्तिस्थिति सी ? (गोयमा ! जहणेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समभहिय) गौतम ! वन्य ५६।५भने। यो मा अष्ट से खास १ मधि४ मे ५-योपभनी (अपज्जत्तयाणं चंदेवाणं पुच्छा ?) अपर्यास यन्द्रदेवानी छ ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) गौतम ! धन्य ५४ भने उत्कृष्ट ५५ मन्तभुतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पानी छ। ? (गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तणं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं अंतोमुहुत्तणं) गौतम ! धन्य ५८योપમને ચે ભાગ, અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા, ઉત્કૃષ્ટ અન્તમુહૂર્ત ઓછા એક પલ્યોપમ અને એક લાખ વર્ષની
(चंदविमाणेणं देवीणं पुच्छा ?) यन्द्र विमानमा वियोनी छ ? (जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्ध पलिओवमं पन्नासवाससहस्समब्भहिय) गौतम! धन्य पक्ष्यापभनी याथे। मास, Gष्ट पयास उन्न२ वर्ष धि म ५८याम (अपज्जत्तियाणं पुच्छा ?) १५४४ यन्द्र विमाननी
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨