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प्रमैयबोधिनी टीका पद ४ सू.०८ ज्योतिष्कदेवानां स्थितिनिरूपणम् ४९९ अट्रभागपलिओवमं, ताराविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा, गोयमा ! जहणणेणं वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं, पजत्तियाणं देवीणं पुच्छा, गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागं अंतोमुहुतूणं, उकोसेणं साइरेगं पलिओवमट्ठभागं अंतोमुहुत्तूणं ।।सू० ८॥ ____ छाया--ज्योतिष्काणां देवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन पल्योपमाष्टभागम् , उत्कृष्टेन पल्योपमम् वर्षशतसहस्राभ्यधिकम्, अपर्याप्तकज्योतिष्काणां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन पल्योपमाष्टभागम्, अन्तर्मुहूतानम्, उत्कृष्टेन पल्योपमं वर्षशत
ज्योतिष्कदेवों की स्थिति की वक्तव्यता शब्दार्थ-(जोइसियाणं देवाणं पुच्छा ?) ज्योतिष्क देवों की स्थिति की पृच्छा अर्थात् स्थिति कितने काल की ? (गोयमा ! (जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समन्भहियं) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का आठवां भाग, उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम की (अपज्जत्त जोइसियाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण यि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तों की स्थिति कितनी ? (गोयमा जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो अंतोमुहुत्तूणो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समन्भहियं अंतोमुहुत्तूण) गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम का आठवां भाग, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम और एक
તિષ્ક દેવાની સ્થિતિની વક્તધ્યતા शहाथ-(जोइसियाणं देवाणं पुच्छा ?) ज्येति हेवानस्थिति समधी छ ? अर्थात् स्थिति - ? (गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं पलि. ओवमं वाससयसहस्समब्भहियं) गौतम ! २४वन्य पक्ष्या५मन। म मा अकृष्ट मेष मधि४ पक्ष्योपमनी (अपज्जत्तय जोइसियाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त ज्योति हैवानी स्थिति थी ? (गोयमा ! जहण्णेणं वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्त) गौतम धन्य मने पृष्ट मन्तभुतानी (पज्जत्तयाण पुच्छा ?) पर्याप्तीनी स्थिति
सी ? (गोयमा जहण्णेणं पलि ओवमट्ठभागो अंतोमुत्तूणो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं अंतोमुत्तूगं) गौतम ! धन्य मन्तभुत माछा पक्ष्या५मना આઠમે ભાગ ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા એક પલેપમ અને એક લાખ વર્ષની
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨